बंगाल की मुख्यमंत्री परिस्थितियों को नियंत्रित करने में असमर्थ
सपना सी.पी. साहू 'स्वप्निल'
इंदौर। भारत में बंगाल बौद्धिक, धार्मिक, कला, संस्कृति आदि से एक समृद्धशाली प्रदेश रहा है। यह गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, राजा राम मोहन राय, दीनबंधु , बंकिमचंद्र चटर्जी, श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदि जैसे कई अग्रणी गणमान्यों की जन्म व कर्मस्थली रही हैं, जिन्होंने भारत सहित पूरे संसार को अपने विवेक, उदारता के महान संदेश दिए है। उनके कर्म, चरित्र, व्यवहार और आदर्श कभी भूलाए नहीं जा सकते। लेकिन इन दिनों समृद्धशाली बंगाल राज्य में अराजकता इतनी बढ़ चुकी है कि हमारी राष्ट्रपति माननीय श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी तक वहां का आलम जानकर भयभीत है। इन दिनों पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में जो बलात्कार, चोरी, डकैती, हत्या की वारदातें, धरना, जुलूस, हिंसात्मक प्रदर्शन, व्याभिचार, अभद्रता, पुलिस दमन का जो मंजर नज़र आ रहा है, वह बंगाल ही नहीं पूरे भारत के लिए चिंताजनक विषय है।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के नामी आरजी कर अस्पताल के भीतर एक सजग, कर्मशील महिला डॉक्टर, वीभत्स बलात्कार की शिकार होने के बाद, क्रुर मौत की नींद सुला दी जाती है और फिर वहां का शासनतंत्र विकृत मानसिकता के गुनाहगार को कठोर सजा देने की बजाय, उसका ही बचावकारी बनकर खड़ा हो जाता है। वास्तव में, तब मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी का मौन किसी कुटील बुद्धि की खलनायिका सा प्रतीत होता है। ऐसे बचाव आंदोलन बेगुनाह डाक्टर बेटी के साथ कितने अन्यायपूर्ण लग रहे थे। लग रहा था कि जिस शासिका के हाथ में न्याय है वह ऐसा कैसे कर सकती है। वह खुद एक औरत होकर औरत का दर्द समझे बिना ही कैसे अपराधियों की तरफदार बन सकती हैं।
एक समय में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी निर्बलों की सहारा थी। यूं तो ममता बेनर्जी ने राह से संसद तक बंगाल के अशक्त, निराश्रितों के लिए राजनीति की लेकिन मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठते ही उनके मसीहा वाले रंग-ढंग जिस तरह से बदले है। वह आम जनमानस को असमजंस में डालता है कि उन्होंने जिस नेता से भलाई की उम्मीदें बांध मतदान किया था। वह इतनी निष्ठुरता का प्रदर्शन कैसे कर सकती है। क्या वे उस समय दायित्व विमुखता का परिचय खुद हाथ में तख्ती पकडे़ नहीं दे रही थी। उस शासिका से अच्छे तो वहां के अन्य डाॅक्टर, कुछ विवेकी जन, वहां का विपक्ष है कि उनकी आत्मा अभी मरी नहीं बल्कि चैतन्य है। वे रोष प्रकट करते सड़कों पर उतर आए। लेकिन उस जनता पर पुलिस ने लाठियां भांजी हैं, तेज पानी की बौछारें की, आंसू गैस छोड़ी है। उसके बाद उपद्रव मचाने पर पुलिस एफआईआर भी लागू की है। परन्तु इसमें पुलिस को तो अराजक हो चुकी शासिका का आदेश मानना भी जरूरी ही है।
कोलकाता में डाक्टर रेप कांड और मर्डर के मामले में जिस तरह से घटनाक्रम सामने आया है, वह मन को झकझोर कर रख देने वाला है। वैसे इसमें अभी तक कोलकता का डॉक्टर संघ हड़ताल, प्रदर्शन, धरने पर अड़ा हैं। लेकिन घटना में राजनीतिक मोड़ भी आ गया है। अन्य विपक्षी कांग्रेस जो तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी है उसने अपराधियों के बचाव के लिए देश के बडे़ वकील, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को मैदान में उतारा है। इस 26 अगस्त को तो ममता सरकार का असली रंग पूरे भारत के समक्ष उजागर हो चुका है।
वैसे बंगाल में समय-समय पर जो हिंसा, आगजनी, हमले, धरना, प्रदर्शन सामने आए हैं, उसमें भी राज्य सरकार का रवैय्या सही नहीं दिखा है। यूं तो ममता बेनर्जी की राज्य सरकार सदैव केंद्र सरकार से भिड़ने को उतारू रहती है लेकिन जब संदेशखाली में एक अप्रवासी ने बंगाल की महिलाओं से यौन शोषण किया, अवैध धंधों में धकलते हुए अपना वर्चस्व जमाया, तब भी ममता सरकार ने कोई कठोर कार्रवाई नहीं की थी।
वही दूसरी ओर अपराध की रोकथाम, रोजगार, काम-धंधे विकसित करने जैसे जरूरी कदम भी वहां की सरकार नहीं उठाती। अब तो जो दयनीय हालात कोलकाता के हैं वहां कोई भी उद्योगपति अपने कारोबार की इकाई स्थापित करने से कतराएंगे क्योंकि अशांति, अराजकता और उन्नति कभी साथ-साथ नहीं रहती। उद्यमी भी डरते है कि न जाने कब कौन सा खौफ का मंजर सामने आ जाए, राज्य सरकार अपने गुर्गों से हड़ताल करवाए, भारत बंद की घोषणा हो जाए, कब हिंसात्मक भीड़ रोड़ पर दंगे करते-करते आगजनी कर बैठे और हमारा सब होम हो जाए। जब आरजी कर अस्पताल में बलात्कार, हत्या का अपराध सामने आया तो राज्य सरकार को कलकत्ता को सुरक्षा देते हुए पुलिस चाक चौबंद कडे़ करने थे। लेकिन रातों-रात सेंकड़ों उपद्रवी सबूत मिटाने के लिए आते है और अस्पताल को तोड़ फोड़कर चले जाते है। फिर मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी कुटील राजनीतिज्ञ बन दोषारोपण विरोधियों पर करने लगी। वही और तो ओर वहां के आम लोग भी कितने भयाक्रांत है कि सच्चाई उजागर करने की जगह मौन धारण करकर बैठे है। विपक्षी भाजपाई रोष मार्च कर कार्यवाही की मांग कर रहे है। जो ममता सरकार और उनके समर्थकों को नहीं भा रहा। जिसके कारण कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। ममता सरकार इतनी अराजक हो चुकी है कि उचित मांगों को लेकर भी बोलने का हक छीन रही है।
देखने में आता है कि जब मणीपुर में दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी थी तो ममता सरकार और देश का पूरा विपक्ष न्याय की मांग कर रहा था पर जब बंगाल में मणीपुर जैसा कांड एक मुस्लिम बहन के साथ हुआ तो ममता सरकार और विपक्ष ने चुप्पी साध ली थी। वैसे उसके बाद भी बंगाल से निरंतर महिलाओं पर अत्याचार, पिटाई आदि के कई वीडियों वायरल हुए है। अभी-अभी जिस महिला डाक्टर से बलात्कार की घटना पर पूरा देश रोष जता रहा है, तो ऐसे में ममता बेनर्जी और विपक्ष का ऐसा दोहरा आचरण क्यों? यह सोचनीय प्रश्न है। कोलकता की घटना में तो शासिका ममता बेनर्जी खुद सड़कों पर उतरकर इतना व्यंगात्मक आचरण करती है कि वह शांति और न्याय चाहती है जबकि, वह ऐसा करकर खुद जता रही है कि वह, वहां की अराजक परिस्थितियों को नियंत्रित करने में असमर्थ है। वह खुद मुख्यमंत्री है जो एक आदेशात्मक कार्यवाही से व्यवस्था कायम करने में सक्षम है। पर उनका रोड़ मार्च का बनावटी आडम्बर हास्यपूर्ण हो गया। वह अब राजकाज संभालने में लाचार दिख रही है।
यूं तो बंगाल के सभी घटनाक्रम बहुत डरावने है। जहां सबसे अधिक दुर्गाशक्ति की पूजा होती है वहां नारीशक्ति असुरक्षित है। हिंसक प्रदर्शन, दंगों, आंदोलनों के बीच आम जनजीवन कितना कष्टमय हो चुका है। स्कूल, कालेज बंद है, अस्पतालों में प्रदर्शन के चलते उचित चिकित्सा सुविधाएं स्थिल है। वहां डर से चुप बैठे हर एक जन को अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। अपने-अपने मन में विश्वास जगाना होगा ताकि ममता सरकार की अराजकता समाप्त हो। अभी की परिस्थितियों अनुरूप तो, पूरे देश से बंगाल की सुख, शांति व सुखद भविष्य के लिए एक ही स्वर उठ रहा है कि वहां असमर्थ मुख्यमंत्री को हटाकर राष्ट्रपति शासन लागू हो जाना चाहिए।
इंदौर ( म.प्र.)
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