लोकतंत्र और राजनीतिक हिंसा
- डा. वरिंदर भाटिया

प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेताओं ने अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है और कहा कि राजनीति और लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा का उमड़ता प्रभाव पूरे विश्व के लिए चिंताजनक है।
आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक पेपर के मुताबिक लोकतंत्र और हिंसा का अपवित्र और गहन संबंध है। यहां तक कि दुनिया के सबसे परिपक्व लोकतंत्र भी इस तरह के गहरे संबंध को खत्म करने में असमर्थ रहे हैं। उदाहरण के लिए 1980 के दशक के उत्तरार्ध और 2000 के दशक के बीच ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, इटली और जर्मनी जैसे पश्चिमी यूरोप के देशों में चरमपंथी समूहों की ओर से राजनीतिक हिंसा का विस्फोट देखा गया।  हाल के वर्षों में, दुनिया ने यूनाइटेड किंगडम (यूके) में ब्रेक्सिट मुद्दे, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) में ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन और 2020 और 2024 के अमरीकी चुनावों पर राजनीतिक हिंसा की घटनाएं देखी हैं।
भारत जैसा दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी राजनीतिक हिंसा से कभी अलग नहीं रहा है। जहां तक देशी लोकतंत्र के राजनीतिक कटु सत्य का सवाल है तो भारत में लोकतांत्रिक शासन की जो प्रणाली विकसित हुई है, चाहे कोई माने या न माने, वह अब सेवा की बजाय सत्ता और शक्ति केंद्रित हो गई है। पश्चिम के विकसित देशों में जनप्रतिनिधि लोगों की सेवा करने के लिए चुने जाते हैं, जबकि भारत में लोगों पर शासन करने के लिए जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं।
चुनाव जीतने पर मिलने वाली असीमित सत्ता और पैसा समूची राजनीतिक और चुनावी प्रक्रिया को किसी न किसी रूप में भ्रष्ट और हिंसक बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों में हिंसक राजनीतिक संघर्ष अक्सर देखने को मिलते हैं। लोकतंत्र की व्यवस्था कमाल की है। आज भी लोकतंत्र शासन व्यवस्था के उपलब्ध तरीकों में से एक बेहतर विकल्प माना जाता है, क्योंकि यह बुनियादी मानवीय मूल्यों के आधार पर पनपता है। लोकतंत्र का मतलब होता है जवाबदेही के साथ समाज के हित में समाज के साथ मिलकर निर्णय लेना और उन्हें लागू करना। वैसे तो देश चलाने के लिए कई तरह की व्यवस्थाओं के विकल्प मौजूद रहे हैं, लेकिन उन सबमें लोकतंत्र को सबसे बेहतर व्यवस्था माना गया है, क्योंकि इस व्यवस्था में अलग-अलग विचारों, मतों, परिस्थितियों को ध्यान में रख कर निर्णय लिए और लागू किए जाते हैं। यह केवल संख्याओं या बहुमत से चलने वाली व्यवस्था नहीं है।
बहुमत के निर्णय को लागू करने से पहले यह देखना होता है कि व्यापक समाज के हित में क्या है? कहीं इससे अन्याय तो नहीं हो रहा है? कहीं किसी के साथ भेदभाव या शोषण तो नहीं हो रहा है? याद रहे कि लोकतंत्र में मूल्यों, उसूलों, मानकों का सबसे ज्यादा महत्व होता है। अगर बहुमत वाली व्यवस्था मूल्यों से भटक कर निर्णय लेने लगे, तो परिवार, समाज और देश को बहुत नुकसान पहुंचता है। लोकतांत्रिक समाज ज्यादा गहरा और स्थिर होता है। अगर कभी देश के ऊपर कोई संकट आता है, तब लोकतांत्रिक समाज इससे निपटने का काम केवल सरकार पर नहीं छोड़ देता है, बल्कि लोग खुद भी समाधान खोजने में जुट जाते हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा की मौजूदगी का एक बड़ा कारण संवादहीनता भी है।
लोकतंत्र की पहली और सबसे बड़ी जरूरत संवाद है। यह एक ऐसा भावनात्मक तत्व होता है, जो लोगों को जोड़ता है। संवाद से ही एक-दूसरे के प्रति स्वीकार्यता पैदा होती है। जब भी लोकतंत्र को तोडऩा होता है, तब सबसे पहले संवाद को तोड़ा जाता है। कोई भी व्यक्ति जब अपना मत व्यक्त करता है, तब हिंसा से, डर से, भय से, दबाव से उसे अपना मत वापस लेने के लिए मजबूर किया जाता है।
यही राजनीतिक हिंसा का मूल तत्व होता है। आज अमरीकी लोकतंत्र को लेकर हमारी सोच सवालिया निशान लगा रही है। असल में डोनाल्ड ट्रंप पर हमला अमरीका में नफरत की बुनियाद पर बनाए जा रहे अमरीकी समाज की भयानक तस्वीर है। एक ताजा अमरीकन सर्वे में पाया गया कि 10 प्रतिशत लोग बल प्रयोग के जरिए भी ट्रंप को रास्ते से हटाने के पक्षधर हैं, तो 7 प्रतिशत ऐसे लोग भी हैं जो हर ताकत का इस्तेमाल कर ट्रंप को सत्ता में लाने के समर्थक हैं। यह रस्साकशी भी वहां राजनीतिक हिंसा के लिए एक कारक हो सकती है। शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट पेप, जो शिकागो प्रोजेक्ट ऑन सिक्योरिटी एंड थ्रेट्स के डायरेक्टर भी हैं, ने नेशनल सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि 10 प्रतिशत अमरीकी वयस्क नागरिक, जिनमें से एक-तिहाई के पास बंदूकें हैं, वो इस बात से सहमत हैं कि ‘डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए बल का प्रयोग उचित है।’ लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा की मौजूदगी किसी भी शासकीय व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है।
भारत में हो रही पॉलिटिकल किलिंग्स की संख्या चिंताजनक है। देश में 2017 से 2019 के बीच, यानी महज दो साल के भीतर करीब 230 हत्याएं राजनीतिक कारणों से हुईं। इनमें सबसे अधिक 49 हत्याएं झारखंड में हुईं। इसके बाद 27 हत्याएं पश्चिम बंगाल में हुईं और 26 हत्याएं बिहार में हुईं। ये आंकड़े सरकार ने लोकसभा में रखे थे। केरल में भी राजनीतिक हत्याओं के खूब मामले सामने आए हैं। 2006 से 2021 के बीच 125 पॉलिटिकल मर्डर हुए। इनमें से 30 मर्डर तो 2016 से 2021 के बीच ही हो गए। पश्चिम बंगाल में भी बीते कई सालों से स्थिति चिंताजनक है।
पूरे विश्व में राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए राजनेताओं को आगे आना होगा। मीडिया की शिक्षा में ‘टू स्टेप फलो मॉडल’ नाम की थ्योरी पढ़ाई जाती है। इस थ्योरी में कहा गया है, ‘मास मीडिया के मुकाबले लोग ओपिनियन लीडर्स (नेता) की बातों से प्रभावित होते हैं।’ इसलिए राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए यह भी कहना जरूरी है कि विश्व के समस्त राजनेता संयम के साथ शब्दों का इस्तेमाल करें। राजनीतिक हिंसा के व्यक्तियों, समुदायों और समाजों पर दूरगामी परिणाम होते हैं। यह सामाजिक सामंजस्य को कमजोर करती है, संस्थाओं में विश्वास को कम करती है और राजनीतिक स्थिरता को बाधित करती है।
इसके प्रभाव तत्काल और दीर्घकालिक दोनों हो सकते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर, राजनीतिक हिंसा से जान-माल की हानि, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात, विस्थापन और आजीविका में व्यवधान होता है। हिंसा से प्रभावित समुदाय सामाजिक विभाजन, अविश्वास और टूटे हुए रिश्तों का अनुभव करते हैं। आर्थिक गतिविधियां अक्सर बाधित होती हैं, जिससे गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक गिरावट आती है। राजनीतिक हिंसा का शासन और मानवाधिकारों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। यह कानून के शासन को चुनौती देती है, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करती है।


राजनीतिक हिंसा के माहौल में मानव अधिकारों का उल्लंघन, जैसे कि पीड़ा, गायब होना और न्यायेतर हत्याएं, आम बात हो जाती हैं। इसके अलावा राजनीतिक हिंसा के अंतरराष्ट्रीय परिणाम हो सकते हैं। यह क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, शरणार्थियों के प्रवाह को बढ़ा सकती है और उग्रवाद-आतंकवाद के लिए प्रजनन आधार प्रदान कर सकती है। राजनीतिक हिंसा के अतिशय प्रभाव पड़ोसी देशों को बाधित कर सकते हैं, अंतरराष्ट्रीय संबंधों को खराब कर सकते हैं और शांति निर्माण के प्रयासों में बाधा डाल सकते हैं। राजनीतिक हिंसा से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो इसके मूल कारणों से निपटे और स्थायी शांति को बढ़ावा दे। कानून का शासन मजबूत हो और संवाद-सुलह को बढ़ावा मिले।
(कालेज प्रिंसीपल)

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