इलमा अजीम
मानवीय स्वास्थ्य से जुड़े तमाम खतरों के बीच प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं (अल्ट्रा-प्रोसेस्ड-फूड) का बढ़ता चलन चिंताजनक है। चिंता इसलिए कि खतरों को जानते-बूझते भी ऐसे खाद्य पदार्थों की बाजार में उपलब्धता ज्यादा होने लगी है। लोग बेपरवाह होकर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। खास तौर से नई पीढ़ी को ऐसी खाद्य वस्तुएं अधिक लुभा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की ओर से जारी एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारत का प्रसंस्कृत खाद्य बाजार 2011 से 2021 तक 13.37 फीसदी की सालाना दर से बढ़ा है। हालांकि कोविड-19 महामारी के दौरान इस क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर 5.50 प्रतिशत रह गई थी, लेकिन यह अस्थायी दौर था। इसके बाद फिर इनकी उपलब्धता सहज होने लगी। चिंता इस बात की है कि खतरनाक बन रही खाद्य वस्तुओं को बाजार से हटाने का भारत में मजबूत तंत्र नहीं है। यहां तक कि शराब और धूम्रपान जैसे नशे की चीजों को नियंत्रित करने के लिए भी कोई ठोस नीति नहीं है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं के निरंकुश होते बाजार के लिए सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। असल में इस समस्या को लेकर सरकारी स्तर पर कोई चिंतन भी नजर नहीं आता। यह बात सही है कि केंद्र और राज्य की सरकारों ने लोगों के पोषक आहार के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं, लेकिन बाजार में बिक रही मानवीय सेहत के लिए नुकसानदेह वस्तुओं पर लगाम लगाने के लिए कोई ठोस नीति नहीं है। लुभाने वाले विज्ञापन इन उत्पादों को बढ़ावा दे रहे हैं। लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ की किसी को इजाजत नहीं दी जा सकती।
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