नई शिक्षा नीति से उम्मीदें
- डा. वरिंदर भाटिया
भारत की नई शिक्षा नीति को 2020 में मंजूरी दी गई थी। यह नीति पिछले 30 सालों से चली आ रही शिक्षा नीति 1986 को बदल देती है। इसका उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी की जरूरतों के हिसाब से बदलना और भारत की संस्कृति और विविधता को बनाए रखते हुए वैश्विक स्तर पर लाना है। नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भारत के शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव है। यह 2020 में लागू की गई थी और 1986 की पुरानी शिक्षा नीति की जगह लेती है। एनईपी का लक्ष्य 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए भारत के छात्रों को तैयार करना है। यह नीति पूरे शिक्षा तंत्र को बदलने की कोशिश करती है, जिसमें बचपन की शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और कौशल विकास तक सब कुछ शामिल है। एनईपी सिर्फ किताबों से पढ़ाई पर जोर नहीं देती, बल्कि समग्र विकास पर ध्यान देती है। इसमें अलग-अलग विषयों को एक साथ पढ़ाने और कम उम्र से ही व्यावसायिक कौशल सिखाने पर बल दिया गया है।
नई शिक्षा नीति से जुड़ी कुछ समस्याएं हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है। हमारे यहां योग्य अध्यापकों की कुछ कमी है। शिक्षकों और छात्रों दोनों को ही पढ़ाने और सीखने के नए तरीके अपनाने होंगे। कंपनियों को जिन कौशलों की जरूरत है, वो अक्सर छात्रों के सीखे हुए कौशल से मेल नहीं खाते। शिक्षा पर सरकारी खर्च कम हो रहा है, जिससे अच्छी शिक्षा देना मुश्किल हो जाता है। उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हमें इन पर ध्यान देना होगा। पढ़ाई को उद्योग जगत की जरूरतों के हिसाब से बनाना है ताकि छात्रों को नौकरी मिलने में आसानी हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 कौशल विकास पर बहुत जोर देती है। इसका लक्ष्य छात्रों को जरूरी हुनर देना है ताकि वे आज के नौकरी के बाजार में सफल हो सकें।


एनईपी-2020 सिर्फ रट्टा लगाकर परीक्षा पास करने वाली पढ़ाई को खत्म करना चाहती है। अब छात्रों को वो चीजें सीखने को मिलेंगी जो उनके काम आएं। कौशल विकास को मुख्य शिक्षा के साथ जोड़ा जाएगा ताकि छात्र कंप्यूटर, डिजिटल दुनिया और नई टेक्नोलॉजी के बारे में सीख सकें। एनईपी-2020 मानती है कि शिक्षा को अकेले नहीं पढ़ाया जा सकता, उसे कंपनियों की जरूरतों के हिसाब से भी बनाना जरूरी है। ‘नेशनल स्किल्स क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क’ जैसी चीजों की मदद से स्कूलों में पढ़ाई को कंपनियों की जरूरतों के हिसाब से बनाया जाएगा ताकि छात्रों को वो हुनर मिलें जिन्हें कंपनियां ढूंढ रही हैं। स्कूलों में ही छात्रों को कौशल विकास और काम के माहौल की आदत डाली जाएगी।
आज के जमाने में टेक्नोलॉजी सिर्फ एक मददगार नहीं है, बल्कि सीखने का जरूरी हिस्सा है। नई शिक्षा नीति चाहती है कि टेक्नोलॉजी की मदद से कौशल विकास के नए-नए तरीके अपनाए जाएं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से सीखने के तरीके और इंटरेक्टिव टूल बनाए जाएंगे ताकि हर तरह का छात्र आसानी से सीख सके। कक्षाओं में कई तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके पढ़ाई को ज्यादा मजेदार और आसान बनाया जा सकता है। इससे अलग-अलग तरह से सीखने वाले छात्रों को भी फायदा होगा और पैसों की भी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी।
प्राचीन ज्ञान का सम्मान (देशी ज्ञान प्रणाली) हमारी धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। देशी ज्ञान प्रणाली पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही वह ज्ञान की परंपरा है जिसने हमारी संस्कृति और समाज को समृद्ध बनाया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक अहम हिस्सा है देशी ज्ञान प्रणाली। इसमें विज्ञान, तकनीक, साहित्य, दर्शन, कला, चिकित्सा (आयुर्वेद) और योग जैसे कई क्षेत्रों का ज्ञान शामिल है। यह प्राचीन काल से चला आ रहा ज्ञान है जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजा गया है।
प्राचीन भारत में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में ‘अठारह विद्या स्थानों’ के माध्यम से हर तरह का ज्ञान दिया जाता था। देशी ज्ञान प्रणाली पूरे भारतीय उपमहाद्वीप, बर्मा से लेकर आज के अफगानिस्तान और हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक के क्षेत्र के ज्ञान को समेटे हुए है। यह कला, स्थापत्य, विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, दर्शन और परंपराओं में भारत के वैश्विक योगदान को दर्शाता है। पश्चिमी ज्ञान और शासन व्यवस्था से अलग रहने वाले समुदायों के लिए देशी ज्ञान को बचाना बहुत जरूरी है। पीढिय़ों से चली आ रही यह परंपरा प्रकृति के साथ संतुलित रहने का ज्ञान देती है। यह ज्ञान स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल होता है और पर्यावरण को बनाए रखने पर बल देता है। आधुनिक शिक्षा में देशी ज्ञान को शामिल करके हम आज की और आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
टेक्नोलॉजी की मदद से प्राचीन ज्ञान को आसानी से फैलाया जा सकता है। इस समय उच्च शिक्षा की सर्वप्रमुख चुनौती है- सभी प्रदेशों में एक समान शिक्षा नीति का न होना। हालांकि शिक्षा को समवर्ती सूची के अंतर्गत रखा गया है और राज्यों पर कोई भी पाठ्यक्रम केंद्र द्वारा थोपा नहीं जा सकता। पर, परस्पर समन्वय स्थापित कर एक सम्यक, समावेशी, सुदृढ़, समग्र और संतुलित पाठ्यक्रम का ढांचा सामने रखा जा सकता है। कई विद्वानों का तर्क है कि जब इस संप्रभु देश का राष्ट्रगान एक है, राष्ट्रीय गीत एक है, राष्ट्रीय चिह्न एक है, एक राष्ट्रीय पक्षी है, तो एक शिक्षा पद्धति क्यों नहीं? नई शिक्षा नीति इस कमी को पूरा करने में सक्षम है। नई शिक्षा नीति के जरिये भारत में शिक्षा व्यवस्था में परीक्षा और मूल्यांकन के तरीकों में सुधार किया जा रहा है। इन सुधारों का लक्ष्य शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना, छात्रों का तनाव कम करना और मूल्यांकन की एक बेहतर व्यवस्था बनाना है।
हर्टोग समिति और सैडलर कमीशन ने इस बात पर जोर दिया है कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए छात्रों के मूल्यांकन के तरीके को बदला जाना चाहिए। 1968 और 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात पर जोर दिया गया कि परीक्षा सिर्फ प्रमाणपत्र देने के लिए नहीं होनी चाहिए, बल्कि बच्चों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए होनी चाहिए। आज दुनिया एक गांव की तरह हो गई है। हर क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय संबंध बढ़ रहे हैं। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण एक ऐसा व्यापक बदलाव है, जो देशों की सीमाओं को पार करके शिक्षा जगत को समृद्ध बना रहा है और छात्रों को वैश्विक दुनिया के लिए तैयार कर रहा है। भारत की नई शिक्षा नीति (एनईपी) देश की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने की कोशिश है और उच्च शिक्षा के फैलाव में मददगार है।



एनईपी का लक्ष्य बच्चों का सर्वांगीण विकास, कौशल विकास और नवाचार को बढ़ावा देना है। हालांकि इस नीति को लागू करने में दिक्कतें आ सकती हैं, लेकिन यह नीति भारत की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक नया रास्ता दिखाती है। इससे उम्मीद है कि भविष्य में शिक्षा सभी के लिए सुलभ, ज्यादा जरूरी और बेहतर हो सकेगी।
(कालेज प्रिंसिपल)

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