स्वास्थ्य सेवा में हो सुधार
 इलमा अजीम 
संभवत: सारी दुनिया में डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है और अस्पताल एक ऐसी जगह है जहां बीमार और घायलों को इलाज के लिए लाया जाता है, तथापि अधिकतर सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में स्तरहीन उपचार एवं मरीजों को होने वाली परेशानियों के चर्चे खूब देखने-सुनने को मिलते रहते हैं। 



संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार में इलाज पाने का अधिकार भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि अगर मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी डॉक्टर या अस्पताल उसका इलाज करने में न तो किसी तरह की देरी करेंगे और न ही इलाज करने से इनकार करेंगे, वहीं इंडियन मेडिकल काउंसिल के प्रोफेशनल कंडक्ट रेगुलेशन के तहत भी डॉक्टर किसी मरीज का इलाज करने से इनकार नहीं कर सकता है। लेकिन इसके बावजूद कई बार देखने में आता है कि प्राइवेट अस्पताल सीना ठोक कर मरीज को देखने से इंकार कर देते हैं तो सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर अपनी अकर्मण्यता एवं पीछा छुड़ाने की गर्ज के चलते मरीजों को बड़े अस्पतालों को रेफर कर देते हैं जिससे मरीजों की जान पर बन आती है। सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय को चाहिए कि वह इसे जांच का विषय बनाए कि डॉक्टरों ने बिना मरीज की स्वास्थ्य जांच किए और उसको बिना फर्स्ट एड दिए रेफर क्यों किया? ऐसी शिकायतें भी बहुधा समाचार पत्रों अथवा सोशल मीडिया में देखने-पढऩे-सुनने को मिलती हैं जिसमें मरीज की मौत होने के बावजूद उसे वेंटिलेटर पर दिखाकर मुंहमांगी कीमत वसूली जाती है। इस प्रकार के सैंकड़ों किस्से भारत के हर कोने से सुनने-पढऩे को मिल जाएंगे। आम तौर पर सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक मरीजों की पर्ची पर महंगी दवाइयां लिख देते हैं, जिससे गरीब लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। सन् 1950 में भारत में केवल 2717 अस्पताल थे, जबकि सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में कुल 19817 सरकारी अस्पताल हैं तो वहीं प्राइवेट अस्पतालों की संख्या तकरीबन 80671 है। भारत का सबसे पुराना उत्कृष्ट स्वास्थ्य संस्थान एम्स दिल्ली है। हालांकि भारत अभी भी अस्पतालों में मुख्य रूप से बिस्तरों की कमी से जूझ रहा है। यहां पर कोरोना की दूसरी लहर के समय लोगों को अस्पतालों में बिस्तर मिलने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। आज के दौर में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के चलते लोग बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पतालों की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन वहां भी उन्हें डॉक्टरों की महंगी फीस, पर्ची और महंगी दवाइयों से राहत नहीं मिल रही है। लिहाजा यह समय का तकाजा है कि केंद्र और राज्य सरकारें आम भारतीय नागरिकों को सस्ती एवं सुविधाजनक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए स्वास्थ्य तंत्र में आमूलचूल बदलाव लाए।

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