कार्यक्रम की शुरुआत एम. ए. द्वितीय वर्ष के छात्र मोहम्मद तल्हा ने पवित्र कुरान का पाठ से की, उसके बाद हदिया नात एम. द्वितीय वर्ष के छात्रा फरहत अख्तर ने प्रस्तुत किया। जर्मनी के आरिफ नकवी, उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. असलम जमशेदपुरी और आयुसा की अध्यक्षा प्रो. रेशमा परवीन ने कार्यक्रम में सहभागिता की। अध्यक्षता विभाग के शिक्षिका डॉ. शादाब अलीम ने की और डॉ. इरशाद सयानवी और फराह नाज़ ने विशिष्ट अतिथि के रूप में और इरफान आरिफ, जम्मू और मुहम्मद अतहर खान ने सम्मानित अतिथि के रूप में भाग भाग लिया। स्वागत रिसर्च स्कॉलर इलमा मलिक, संचालन सैयदा मरियम इलाही और धन्यवाद ज्ञापन की रस्म फैजान जफर ने अदा की।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए और अपनी पुरानी यादों को साझा करते हुए प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि एक अच्छा शिक्षक हमेशा छात्रों के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहता है और उनके शानदार भविष्य पर गर्व भी करता है। आज ऐसे शिक्षकों की कमी है और सबसे ज्यादा शिक्षकों का कार्य कक्षा तक ही सीमित है। जबकि एक अच्छे शिक्षक के कर्तव्यों में समाज में फैल रही बुराइयों पर नजर रखना और आवश्यकता पड़ने पर उन बुराइयों को सुधारना भी शामिल है। इसके खिलाफ विरोध की आवाज उठाएं। इस दुनिया में माता-पिता के बाद, शिक्षक ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो अपने विद्यार्थियों को अपने से आगे बढ़ते हुए देखना पसंद करता है और चाहता है कि उसके विद्यार्थी उससे आगे बढ़ें और देश तथा राष्ट्र का नाम रोशन करें।
डॉ. आसिफ अली ने कहा कि जैसे-जैसे ज्ञान और शिक्षा का दायरा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे बेईमानी, बेइमानी और अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है और दुख की बात यह है कि इनमें से ज्यादातर युवा पीढ़ी हैं। उन्होंने आगे कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके दो पहलू हैं। शिक्षा साक्षरता और प्रशिक्षण है। वर्तमान युग में साक्षरता पर अधिक ध्यान दिया गया है, व्यक्तित्व निर्माण एवं प्रशिक्षण के पहलू को उपेक्षित किया गया है। आज शिक्षा के साथ-साथ प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है, तभी एक बेहतर समाज अस्तित्व में आएगा।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. शादाब अलीम ने कहा कि आज बच्चों को शिक्षा तो नहीं मिल रही है लेकिन उनमें नैतिक प्रशिक्षण का अभाव है। आज हमें जिस चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता है वह है अच्छे संस्कार। शिक्षा और नैतिक प्रशिक्षण के माध्यम से ही एक सदाचारी समाज अस्तित्व में आ सकता है। शिक्षक हमेशा छात्रों के भविष्य के बारे में सोचता है।शिक्षक एकजुट होकर समाज में फैली बुराइयों के बारे में सोचें तो स्थिति बेहतर होगी। विद्यार्थियों को सिखाया जाना चाहिए कि यदि उनके आसपास कोई बुरा काम करता है तो उन्हें उसका बहिष्कार करना चाहिए।
प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान एवं राष्ट्रीय परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष मौलाना गुलजार कासमी ने कहा कि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसके शिक्षकों का हाथ होता है। जो उनमें छुपी क्षमताओं को पहचान कर उन्हें ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करना। जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों के जीवन में एक अमिट छाप छोड़ते हैं, उसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों के जीवन में अमिट छाप छोड़ते हैं। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है और उर्दू विभाग ने हमेशा गंगा-जमुनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम किया है।
डॉ. इरशाद सयानवी ने कहा कि शिक्षक का महत्व शुरू से ही माना गया है। वर्तमान परिस्थिति में भी शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारियों और छात्रों के मार्गदर्शन के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। क्योंकि एक छात्र की सफलता में शिक्षक की बड़ी भूमिका होती है।
डॉ. अलका वशिष्ठ ने कहा कि शुरू से ही मेरे शिक्षकों ने मेरा अच्छा मार्गदर्शन किया। मैं आज जो कुछ भी हूं, उनकी दुआओं की मदद से ही आज आपके सामने हूं और मैं अपने सभी छात्रों के लिए भी प्रार्थना करती हूं कि वे भी अपने लक्ष्य में सफल हों और हमेशा आगे बढ़ें।
कार्यक्रम में खुर्शीद हयात, इरफान आरिफ, विनोद कुमार बेचैन, शाह-ए-जमां, माह-ए-आलम, फराह नाज ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे।
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