अब संसद भवन निशाने पर

संसद के भीतर सियासत का शोर मचता रहता है। अब यह कोई
 नरेन्द्र कुमार 
नई बात नहीं है, लेकिन नया विवाद नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर हो रहा है। कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी ने मांग की है कि यह उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी के बजाय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों कराया जाए। बेशक राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख हैं। प्रथम नागरिक हैं और भारत सरकार तथा संसद उन्हीं के नाम पर चलाई जाती हैं। संयोग है कि देश की राष्ट्रपति आदिवासी महिला हैं और ऐसी प्रथम महामहिम हैं। गौरतलब यह भी है कि देश राष्ट्रपति प्रणाली से संचालित नहीं होता। हमारी प्रणाली संसदीय है और प्रधानमंत्री इसके प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री ही देश के सर्वोच्च प्रत्यक्ष निर्वाचित जन-प्रतिनिधि भी हैं। वह भारत सरकार के कार्यकारी प्रमुख भी हैं। देश की तमाम गतिविधियों, परिस्थितियों, नीतियों और कूटनीति आदि का प्रथम दायित्व भी प्रधानमंत्री पर ही है। यह विवाद का विषय नहीं है कि लोकतांत्रिक जन-प्रतिनिधियों के सर्वोच्च मंदिर ‘संसद’ का उद्घाटन राष्ट्रपति करें अथवा प्रधानमंत्री करें। दरअसल यह विशुद्ध राजनीति का मुद्दा बना दिया गया है। कांग्रेस और खासकर गांधी परिवार को नए संसद भवन के निर्माण पर आपत्ति थी और अब उद्घाटन को भी विवादित बनाया जा रहा है। कांग्रेस ने ‘सेंट्रल विस्टा’, जिसमें संसद भवन भी है, का खर्च 20,000 करोड़ रुपए प्रचारित कर देश को गुमराह किया था। उसे ‘मोदी महल’ करार दिया गया। उसे प्रधानमंत्री का ‘अंधा अहंकार’ बताया गया। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई। कांग्रेस भूल गई कि यूपीए सरकार के दौरान, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के कार्यकाल में, नए संसद भवन की जरूरत का आकलन किया गया था। कांग्रेस को उद्घाटन की तारीख 28 मई पर भी आपत्ति है, क्योंकि उस दिन ‘सावरकर जयंती’ है। गांधी परिवार तो सावरकर को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ मानने को तैयार नहीं है, लिहाजा अलग-अलग दलीलें दी जा रही हैं कि संसद की नई इमारत का उद्घाटन डॉ. भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन पर कर लिया जाता, तो महान श्रद्धांजलि होती। बहरहाल, इस विषय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts