जैव विविधता का संरक्षण कर, धरती मां को बचाएं

- डॉ. ओपी चौधरी
प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग,
श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज वाराणासी।

               
"समझौते से कार्रवाई तक:जैव विविधता का निर्माण करें" वर्ष 2023 की यह थीम संयुक्त राष्ट्र संघ ने घोषित किया है।' जिसका सीधा सा मतलब है कि हमे केवल बातचीत ही नहीं बल्कि उसे धरातल पर उतारना है, सभी योजनाओं का क्रियान्वयन करना है।
आज जैव विविधता एक मुख्य मुद्दा ही नहीं, अपितु सबसे बड़ी आवश्यकता है। पृथ्वी सम्मेलन' 1992 में रियो-डी-जनेरियो, ब्राजील में अनेक मुद्दों के साथ ही जैव विविधता के संरक्षण पर जोर दिया गया।सम्पूर्ण मानव जाति सहित मानवेतर के लिए भी जैव विविधता अत्यंत जरूरी है। प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता संरक्षण दिवस इस उद्देश्य से मनाया जाता है कि हम लोगों में जागरूकता ला सकें, उन्हें जैव विविधता के संरक्षण हेतु प्रेरित कर सकें। 2011 -2020 का पूरा दशक संयुक्त राष्ट्र संघ ने जैव विविधता के नुकसान को कम करने के लिए घोषित किया था।


हम सभी को विशेष रूप से कोरोना काल मे पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता के संरक्षण की बात बखूबी समझ में आई। धरती पर जितने भी जीव -जंतु और वनस्पतियां हैं सभी का महत्व है, सभी की जरूरत है।
नालंदा की माटी भगवान गौतम बुद्ध की ज्ञान की भूमि रही है। इसी जगह से पूरे विश्व को एक संदेश के रूप में भगवान गौतम बुद्ध का ज्ञान भरा संदेश प्रचारित और प्रसारित हुआ था। गौतम बुद्ध को ईसा से 528 वर्ष पूर्व बोधिवृक्ष (पीपल वृक्ष) के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यह बोधि वृक्ष एक पेड़ न होकर समाज में करुणा, शांति, सद्भावना सहित जीवन हेतु शुद्ध प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन भी देता है। आजकल तेजी से हो रही पेड़ों की कटाई के कारण न केवल वन क्षेत्र घट रहा है बल्कि जंगल पर निर्भर जीव - जंतुओं के लिए गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
खेती में बढ़ते कीटनाशकों का प्रयोग और मोबाइल टावर के  रेडिएशन से मर रहे पक्षी। जीव - जन्तुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।एक आँकड़े के अनुसार प्रतिदिन 4 प्रजातियां दुनियां से विलुप्त हो रही हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है,पर्यावरण असंतुलन हो गया है।
पीपल, नीम, तुलसी अभियान लम्बे समय से पर्यावरण संरक्षण पर काम करते हुए जैव विविधता और मानव कल्याण के लिए प्रयासरत है।अनेक राज्यों में वृक्षारोपण अभियान चलाते हुए पटना गंगा ब्रिज पर नीम कॉरिडोर योजना पूरी कर अब ड्रीम प्रोजेक्ट बोधि वृक्ष कॉरिडोर योजना (राजगीर से लुम्बिनी नेपाल तक) को साकार करने के लिए प्रयासरत है।
प्रथम चरण में राजगीर से गया तक  लगभग 70 किलोमीटर की दूरी तक  बोधिवृक्ष पीपल के पेड़ लगाए जाऐंगे। प्रथम चरण का  शुभारंभ  2 जुलाई, 2023 को पीपल, नीम, तुलसी अभियान के संस्थापक और बोधि वृक्ष कॉरिडोर योजना के जनक व समन्वयक डॉ. धर्मेंद्र कुमार सिंह के नेतृत्व में होने जा रहा है। डॉ. सिंह का विचार है कि आज आम जनमानस तक यह संदेश पहुंचाने की जरूरत है कि बोधि वृक्ष की संख्या बढ़ने से पर्यावरण में ऑक्सीजन सहित समाज में शील, करुणा और प्रज्ञा का संचार होगा। बोधि वृक्ष लगाकर शांति, सहयोग, सद्भावना और स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण का संदेश दिया जायेगा। समाज में बढ़ते  पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ समाज और परिवार में वैचारिक प्रदूषण जैसे आपसी कलह, वैमनस्यता, कटुता, असहयोग आदि बढ़ता ही जा रहा है, उसमें भी कमी आएगी।
बोधिवृक्ष (पीपल) लगाकर  प्राकृतिक आक्सीजन बैंक मिलेगा और बौद्ध सर्किट पर चलने वालों को सुखद छाया मिलेगी।पीपल परिवार की जन संख्या बढ़ाकर ही वातावरण में सकरात्मक उर्जा का प्रसार किया जा सकता है । साथ ही आम जीव -जंतु के संरक्षण से जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा।
इस पुनीत कार्य में हम सभी को अपने -अपने नाम से/पूर्वजों के नाम से एक बोधि वृक्ष लगाने के संकल्प के साथ कार्यक्रम में अवश्य भाग लेना चाहिये। हमारा यह कार्य आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करेगा।
(संयोजक, पीपल, नीम, तुलसी अभियान उ.प्र. इकाई)

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