धीमी विकास दर
Meerut - वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही, अक्तूबर-दिसंबर, में हमारी जीडीपी की विकास दर लुढक़ कर 4.4 फीसदी दर्ज की गई है। पहली तिमाही, अप्रैल-जून, में विकास दर 13.2 फीसदी तक उछली थी और दूसरी तिमाही, जुलाई-सितंबर, में भी 6.3 फीसदी रही थी। उन्हीं के आधार पर अनुमान लगाए गए थे कि मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान औसत विकास दर 7 फीसदी के करीब रह सकती है, लेकिन अब उस स्तर को छूना है, तो अंतिम तिमाही, जनवरी-मार्च, में यह दर कमोबेश 5.1 फीसदी होनी चाहिए। इसके मायने ये नहीं हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था उबरने के बाद फिर गोता खाने की स्थिति में पहुंच गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब भी भारत की विकास दर अमरीका, जर्मनी, फ्रांस, जापान आदि देशों से बहुत बेहतर स्थिति में है। हम चीन के लगभग बराबर ही हैं, लेकिन तीसरी तिमाही के दौरान निजी खपत की मांग, सरकारी व्यय, निर्यात और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है, नतीजतन विकास दर भी प्रभावित हुई है। लोगों की क्रय-शक्ति कम हुई है, तो मांग घटी है। मांग और खपत परस्पर पूरक हैं। मांग कम होगी, तो कारखाने उत्पादन भी कम करेंगे। नतीजतन रोजग़ार भी प्रभावित होगा। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 1.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मैन्यूफैक्चरिंग जीडीपी का बेहद महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि सबसे अधिक रोजग़ार देने वाले क्षेत्रों में एक है। लोगों की निजी खपत 2.1 फीसदी कम हुई है, तो सरकारी उपभोग व्यय भी 1.0 फीसदी घटा है और नेट निर्यात भी 6.7 फीसदी कम किया गया है। उपभोक्ता को सीधे प्रभावित करने वाली महंगाई को इस तरह समझा जा सकता है कि रसोई गैस के दाम 50 रुपए प्रति सिलेंडर बढ़ा दिए गए हैं। अब राजधानी दिल्ली में यह सिलेंडर 1103 रुपए में मिलेगा, जबकि अन्य महानगरों में ज्यादा महंगा कर दिया गया है। कमर्शियल सिलेंडर भी 350 रुपए महंगा किया गया है। अनाज की कीमतें 15 फीसदी तक बढ़ी हैं, जबकि आटा 40 फीसदी महंगा हो गया है। दूध भी कई गुना महंगा हुआ है। बेशक हम विश्व में सबसे तेज उभरने वाली अर्थव्यवस्था हैं, लेकिन जी-20 समूह के देशों में हम सबसे गरीब देश हैं, क्योंकि हम निम्न मध्य वर्ग की अर्थव्यवस्था हैं। भारत आने वाले वर्षों में जर्मनी और जापान सरीखे देशों को पीछे कर तीसरे स्थान की अर्थव्यवस्था भी बन सकता है, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था और आर्थिक असमानताओं के कारण हमारी विकास दर भी प्रभावित होती रहेगी। मुद्रास्फीति जैसे मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारें आपस में मिल-बैठ कर विमर्श कर सकती हैं। कृषि पर भी कोई सर्वमान्य रास्ता निकाला जा सकता है, लेकिन हमारे देश में गैर-जिम्मेदाराना राजनीति बहुत है। कृषि को भारत में राजनीतिक गतिविधि मान रखा है। कृषि को आर्थिक गतिविधि नहीं माना गया है, जबकि उसकी विकास दर कोरोना-काल में भी सकारात्मक थी। बेशक सरकार दलीलें देती रहे कि हमारा जीएसटी संग्रह बढ़ रहा है, विदेशी मुद्रा कोष और निवेश भी बढ़ते रहे हैं, लेकिन आम नागरिक का चिंतित सरोकार महंगाई से है। वह अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विकास दर को भी प्रभावित करती है।
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