शिव-प्रतीकों में जीवन-दर्शन

- सत्येंद्र प्रकाश तिवारी
ज्ञानपुर, भदोही।

शिव का एक-एक भाग इस संपूर्ण संसार की सबसे सरल अभिव्यक्ति है। शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं जो आकाश तत्व से बना है। यह अनंत है और इसका विस्तार अनंत है। जो सबको धारण करता है, अच्छा, बुरा सबकुछ। शिव के जटाजूट पर चंद्रमा है जो प्रतीक है शीतलता का, मन का। सारा खेल मन ही करता है इसलिए मन संतुलित शिव के माध्यम से ही हो सकता है।



शिव त्रिनेत्रधारी हैं जो कि प्रतीक है कि दो आंखें तो सिर्फ़ संसार को देखने के लिए हैं, वहीं तीसरा नेत्र ज्ञान और प्रज्ञा के लिए है। सर्पहार को वरण करना शिव की चैतन्य, सतर्क अवस्था को दर्शाता है, जहां ध्यान अवस्था तुरीय अवस्था को अभिव्यक्त करती है। त्रिशूल प्रतीक है भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक धाराओं का और साथ ही साथ शक्ति का भी। डमरू उस अनहद नाद का द्योतक है जिसकी आकांक्षा सभी को रहती है। शिव के नंदी चार पैर वाले होकर धर्म, अर्थ और मोक्ष के प्रतीक होने के साथ-साथ अनंत प्रतीक्षा व धैर्य के संप्रतीक हैं। नंदी भक्ति के उस रूप का दर्शन करवाते हैं जिसमें भक्त अपने ईश्वर से मिलने को तो आतुर है लेकिन अपनी सीमाओं में।
इसी का प्रमाण है कि ध्यानस्थ शिव को कोई भी संदेश पहुंचाना हो तो नंदी सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं। इसलिए शिव से पहले नंदी के चरण छुए जाते हैं और उनके कानों में मनोकामना कही जाती है। शिव भय, क्रोध, अहंकार को हर लेते हैं।

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