होली से जुड़ी मान्यताएं

- सतीशचंद्र शुक्ला सत्पथी
जौनपुर।

ज्योतिष में होलिका दहन वाली रात का काफी महत्व बताया गया है। इस रात में की गई तंत्र साधना जल्दी सफल होती है। जो लोग मंत्र जप करना चाहते हैं, उन्हें अपने गुरु से परामर्श जरूर करना चाहिए। गुरु के मार्गदर्शन में मंत्र जप करेंगे तो साधना जल्दी सफल हो सकती है। जानिए से जुड़ी कुछ खास मान्यताएं-
जलती हुई होली में अनाज को चढ़ाते हैं?
इस समय खासतौर पर गेहूं की पकने लगती है। पुराने समय से फसल आने पर उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। फसल पकने की खुशी में होली मनाने की और रंग खेलने की परंपरा है। किसान जलती हुई होली में नई फसल का कुछ भाग अर्पित करते हैं। दरअसल, जब भी कोई फसल आती है तो उसका कुछ भाग भगवान को, प्रकृति को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। जलती होली में अनाज डालना एक तरह का यज्ञ ही है। ये नई फसल के लिए भगवान का आभार मानने का पर्व भी है।



बसंत के आगमन का पर्व है होली
होली के समय से ही बंसत ऋतु की भी शुरू होती है। बसंत को ऋतुराज कहा जाता है और इस ऋतु के आने पर होली के रूप में उत्सव मनाने की परंपरा है। मान्यता है कि पुराने समय में फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए बसंत ऋतु को प्रकट किया था। शिव जी की तपस्या भंग हो गई तो उन्होंने गुस्से में कामदेव को ही भस्म कर दिया था। बसंत ऋतु के आगमन से वातावरण सुहावना हो जाता है। पुराने समय में अलग-अलग रंगों को उड़ाकर बसंत ऋतु के आगमन का उत्सव मनाया जाता था। तभी से होली पर रंगों से खेलने की परंपरा शुरू हुई है। उस समय फूलों से रंग बनाए जाते थे।
ये है भक्त प्रहलाद की संक्षिप्त कथा
होली के संबंध में प्रहलाद और होलिका की कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। पुराने समय में हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी का परम भक्त था। ये बात हिरण्यकश्यपु को पसंद नहीं थी। इस वजह से वह प्रहलाद को मारना चाहता था। असुर राज हिरण्यकश्यपु ने बहुत कोशिश की, लेकिन प्रहलाद को मार नहीं सका। तब असुरराज की बहन होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई। होलिका को आग में न जलना का वरदान मिला हुआ था, लेकिन विष्णु जी की कृपा से होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। तभी से प्रहलाद की जीत के रूप में होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है।

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