बृन्दावन के गलियों में होली खेले नन्दलाल
रंगों में भीग के सखियाँ हो गये लाल लाल
मोहन संग खेलने आये कैलाश से त्रिपुरारी
प्रेम के रंग से खेले होली ब्रज मे गिरधारी
कान्हा संग मस्त हो खेले अब तो सखियाँ
कान्हा तो नैन बसे तरसे ना कोई अँखियाँ
प्रेम भाव से खेलत है ब्रज की हर नर-नारी
प्रेम के रंग से खेले होली ब्रज मे गिरधारी
जीवन को भी रंग लो आज प्रेम के रंग मे
तन मन रंग जाये अब तो मोहन के रंग मे
जैसे पलाश के रंगों से प्रकृति रंगी हैं सारी
प्रेम के रंग से खेले होली ब्रज मे गिरधारी
ऐसे रंग लगा दे मोहन जीवन जाऊ बिसारी
मिल जाये मोक्ष,और सदा चरण रहूँ तिहारी
अब तो दरस दिखा दे मोहे हे मेरे बनवारी
प्रेम के रंग से खेले होली ब्रज मे गिरधारी
ऐसे रंग रंगा रंगरेज ने मिट गईं हर तृष्णा
उसके रंग मे रंगा तो मिले गये मोहे कृष्णा
उसके गलियों मे भूलू अब सुधबुध सारी
प्रेम के रंग से खेले होली ब्रज मे गिरधारी
------------
- प्रमेशदीप मानिकपुरी
आमाचानी धमतरी छग
No comments:
Post a Comment