सर्दी या नाक बंद होने पर रहें अलर्ट, हो सकते हैं ए एफएस  से संक्रमित 

मेरठ  । एलर्जिक फंगल साइनसाइटिस (AFS) आजकल बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है और ये चिंता बढ़ा रहा है. हालांकि, समय पर बेहतर इलाज से मरीज ठीक हो जाते हैं लेकिन अगर वक्त रहते इस बीमारी का इलाज न किया जाए तो ब्रेन इंफेक्शन व आंखों की रोशनी चले जाने तक का खतरा रहता है. 

AFS तब होता है जब नाक और साइनस म्यूकोसा फंगल बीजाणुओं को फंसा लेते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ती एलर्जी और इम्यूनिटी बिगड़ जाने के कारण एएफएस होता है. जब एएफएस होता है तो नाक में रुकावट आ जाती है, चेहरे और सिर में दर्द होता है, आंखों के पीछे दर्द, बार-बार खांसी आना और सूंघने की क्षमता खत्म हो जाती है.

गुरुग्राम के सीके बिरला अस्पताल में ईएनटी/ओटोलर्यनोलॉजी डॉक्टर अनीश गुप्ता ने बताया, ‘’बीते कुछ वक्त में एलर्जिक फंगल साइनसाइटिस के मामलों में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है, ऐसे में इसके इलाज के बारे में जानना-समझना लोगों के बहुत ही आवश्यक है. हाल ही में इस तरह के एक मरीज हमारे अस्पताल पहुंचे थे जिनका हमने इलाज किया. उनके दाहिने नैसल ब्लॉक थे, बहुत ही ज्यादा सिरदर्द था, चेहरे पर दर्द था. मरीज का सीटी स्कैन कर जब गहन जांच की गई तो सामने आया कि फंगल साइनसाइटिस के कारण बलगम रुक रहा था जिसके चलते आंख और दिमाग के बीच की हड्डी के बीच का अंतर खत्म हो गया था. अगर मरीज के इलाज में देरी होती उनकी आंखों की रोशनी जाने और ब्रेन इंफेक्शन का खतरा था. सभी जरूरी टेस्ट के बाद हमारी टीम ने मरीज साइनस सर्जरी की. धीरे-धीरे मरीज ने रिकवरी कर ली और अब वो पूरी तरह स्वस्थ हैं.’’ 

अलग-अलग स्टडी से पता चलता है कि जो मरीज एलर्जिक फंगल साइनसाइटिस (एएफएस) से संक्रमित होते हैं, उन्हें धूल और परफ्यूम जैसी चीजों से एलर्जी रही होती है. 

डॉक्टर अनिष गुप्ता ने इस बीमारी के बारे में जानकारी देते हुए मास्क पहनने के फायदे और अन्य एहतियाती कदम का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ‘’हम मरीजों से रिक्वेस्ट करते हैं कि वो मास्क पहनकर रखें और धूल वाली जगहों पर जाने से बचें, क्योंकि इससे नाक में एलर्जी होने की आशंका रहती है.’’

सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि समय पर इलाज से एएफएस को गंभीर होने से बचाया जा सकता है. ऐसे में अगर किसी मरीज को एलर्जी से जुड़े कोई लक्षण यानी एएफएस के लक्षण महसूस हों तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं. साथ ही रेगुलर फॉलो-अप लें और मेडिकल थेरेपी कराएं ताकि इस बीमारी की चपेट में दोबारा आने से बचा जा सके.

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