1857 का  संग्राम 

भगवा रंग सैनिकों को अग्रेजों से लोहा लेने के लिये बढाता था मनोबल 

 मेरठ।  1857 में अग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाने वाली  मेरठ की क्रान्ति धरा के जितने भी तथ्य हमें मिल जाय वह भी कम है। इतिहास को खंगाले तो उस समय अंग्रेजों से लोहा लेने के लिये शूरवीर योद्धाओं को एकजुट करने के लिए क्रांतिकारी झंडे व रोटी की अहम भूमिका होती है। वहीं भगवा रंग का भी उस काफी महत्व रहा है। जो उस समय क्रान्ति में अग्रेजों  से लोहा लेने के लिये काफ महत्वपूर्ण बना । मेरठ के भैंसाली मैदान स्थित 1857 की क्रान्ति के लिये बने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के संग्रहालय में दिखाया गया है। 

 देश में जब अंग्रेजों से मुक्ति  पाने के लिए चिंगारी क्रांतिकारियों में धधक रही थी। उस समय क्रांतिकारियों ने एकजुट होने के लिये एक हरे रंग के झंडे को बनाया था। जिस पर कमल का फूल था। ये वही झंडा जिसे उस वक्त क्रान्तिकारी झंडा कहा जाता था। मेरठ के संग्रहालय में ऐसे ही कई झंडों को जिक्र मिलता है। जो अग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिये क्रान्तिकारियों द्वारा इस्तेमाल किये गये। देश की आजादी में इस झंडे का अहम रोल रहा है। संग्रहालय में इस प्रकार के कई प्रकार की झंडे का जिक्र वहां मिलता है। झंडे में एक तरफ कमल का निशान व एक तरफ रोटी होती थी। इन दोनो निशानों का उस समय की क्रान्ति से सीधा संबंध था। उस समय गुलामी की जंजीरों से मुक्ति पाने के लिये रोटी व कमल की अहम भूमिका थी। संग्रहालय के अधीक्षक  पतरू मौर्य ने बताया कि संग्रहालय में ऐसे कई तथ्य आज भी मौजूद है। जो प्रदर्शनी के रूप में लोगों को जानकारी देने के लिये सचोए गये है। भगवा रंग का भी 1857 की क्रान्ति में काफी महत्व था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब अंग्रेजों से लोहा लेने के लिये मैदान में पहुंचे तो उनकी सेना के पास हनुमान के चित्र का भगवा रंग का झंडा सैनिकों का मनोबल बढ़ाने में काम आता था। 

क्रान्ति का बिगुल बजाने में मंगल पांडे का अहम रोल रहा । जो चिंगारी उन्होंने बंगाल के बैरकपुर से सुलगायी थी। वह पूरे देश में फेल गयी। जिसके बाद अगे्रजों को देश को छोडने के लिये मजबूर होना पडा । 


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