मानसूनः मजे के साथ संकट
मानसून एक तरफ जहां आनंद, उल्लास और खुशियों की बौछार कर हमें भिगोता है तो वहीं इस मौसम में बिजली गिरने, बादल फटने और बाढ़ आने से अत्यधिक हानि भी होती है। अचानक आने वाली इन आपदाओं से भारी नुकसान होता है। ये प्राकृतिक घटनाएं हैं, किन्तु इनको विनाशकारी हम लोगों ने ही बनाया है। यदि हम प्रकृति के प्रति सचेत, संवेदनशील, जाग्रत और उदार रहें तो इन आपदाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। केलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार ‘ग्रीनहाउस गैसों’ के बढऩे से हुए बदलाव से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं। वहीं नासा के अध्ययन के अनुसार यदि धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो बिजली गिरने की लगभग 10 प्रतिशत घटनाएं बढ़ती हैं। वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष बिजली गिरने की 2.5 करोड़ घटनाएं होती हैं। हमारे देश में हर साल 2000 से अधिक मौतें बिजली गिरने के कारण होती हैं। बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें उन लोगों की होती हैं जो बारिश के वक्त किसी पेड़ के नीचे खड़े रहते हैं। आकाशीय बिजली का बनना और गिरना एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे बचाव के लिए हमारे देश में बिजली गिरने संबंधी अलर्ट सिस्टम को और अधिक उन्नत करने के साथ ही सूचना तंत्र में भी सुधार लाना होगा जिससे बिजली गिरने से पहले ही हम सुरक्षित हो जाएं। बाढ़ से बचाव के लिए आपदा मोचन बल को प्रशिक्षित करना तथा आवश्यकता पडऩे पर तुरंत तैनात करना। बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है, लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे हिमालय, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि में होती हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के कई क्षेत्रों में बादल फटने की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होगी। बादलों के फटने की घटना के अनुकूल क्षेत्रों और मौसम संबंधी स्थितियों की पहचान कर इससे होने वाले जन-धन के नुकसान से बचा जा सकता है।


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