विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर याद आई वो काली रात 

मेरठ ।14 अगस्त 1947 की वह भयानक रात जब भी याद आती है रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आँखों से आंसू बहने लगते हैं । उस रात को मैं जीवन भर नहीं भुला सकता जिस रात की काली छाया ने ना जाने कितने घरों के चिराग बुझा दिए और ना जाने कितने ही परिवारों को उजाड़ दिया। ये दर्दभरी कराहती आवाज़ है उन पीड़ितों की जिन्होंने 14 अगस्त 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय लोगों के जीवन में आये भयावह को बहुत करीब से देखा।




 विभाजन के समय 200 परिवार आये थे मेरठ 


यूं तो विभाजन के समय लाखों लोगों को रातों रात पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था और शर्त ना मानने पर असंख्य लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। जिनमें से लगभग 200 परिवार मेरठ में आकर बस गए थे और मेहनत मजदूरी कर अपना व्यापार स्थापित किया। कहने को तो आज मेरठ स्पोर्ट्स नगरी कहलाती है लेकिन यह सभी स्पोर्ट्स कारोबारी पाकिस्तान और भारत के विभाजन के समय यहां आए थे और आकर मेरठ में स्पोर्ट व्यापार की शुरुआत की थी। हालांकि इनमें से कुछ लोग जालंधर रुक गए थे और अधिकांश लोग मेरठ आ गए थे।




 कृष्ण कुमार खन्ना हैं उस काली रात की भयानक कहानी के गवाह 


97 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण कुमार खन्ना उस समय लगभग 21 वर्ष के थे। देश की आजादी के आंदोलन में कृष्ण कुमार खन्ना जेल भी जा चुके थे। कृष्ण कुमार खन्ना पाकिस्तान के शेखपुरा में अपने परिवार के साथ रहते थे। कृष्ण कुमार खन्ना के पिता शेखपुरा में चावल मंडी के बड़े आढ़ती थे। विभाजन के समय कृष्ण कुमार खन्ना का परिवार पाकिस्तान छोड़ना नहीं चाहता था लेकिन हालातों ने उन्हें पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर कर दिया। कृष्ण कुमार खन्ना ने अपनी आँखों से वह भयानक मंजर देखा था, अब जब भी कृष्ण कुमार उस मंजर को याद करते हैं तो आंखों में आंसू भर आते हैं और सिसकियां मारकर रो पड़ते हैं। 


कृष्ण कुमार खन्ना का कहना है कि उस समय वह जैसे तैसे करके मेरठ तो आ गए थे लेकिन यहां चावल की कोई बड़ी मंडी नहीं थी  जिससे उन्हें चावल का व्यापार करने में काफी दिक्कत आ रही थी। जिसके बाद उन्होंने यहां स्पोर्ट्स की बॉल बनाने का काम शुरू किया। धीरे धीरे इनकी बॉल बनाने का काम तरक्की करता गया और आज खन्ना प्रोडक्ट के नाम से इनका अपना स्पोर्ट्स का ब्रांड है। फुटबॉल हो वॉलीबॉल हो या फिर क्रिकेट की बॉल, हर जगह खन्ना स्पोर्ट्स ने अपनी पहचान बना ली है। वर्तमान में कृष्ण कुमार खन्ना अपने परिवार के साथ विक्टोरिया पार्क स्थित स्पोर्ट्स कॉलोनी में रहते हैं।




 लाचारी की लड़ाई से तरक्की तक का सफ़र 


सूरज कुंड रोड निवासी अभिमन्यु महाजन स्पोर्ट्स कारोबारी हैं। प्रेम सागर एंड संस स्पोर्ट्स कंपनी के मालिक अभिमन्यु का सागर ब्रांड पूरे भारत में मशहूर है। अभिमन्यु बताते हैं कि उनके दादा स्वर्गीय चुन्नीलाल महाजन सियालकोट में बड़े जमींदार हुआ करते थे। जिन्हें लोग शाहजी कहकर बुलाते थे। लेकिन अचानक विभाजन की खबर मिली और पाकिस्तान में हिंदुओं के घर भूचाल सा आ गया लोगों से कहा गया या तो अपना धर्म परिवर्तन करो या फिर पाकिस्तान छोड़ो। अगर किसी ने उनकी एक शर्त नहीं मानी तो उनको बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। अभिमन्यु के दादा अपने पांच भाइयों, 4 बहनों के साथ किसी तरह भारत आ गए लेकिन उनकी मां और एक भाई उनसे बिछड़ गए, जिनका आज तक कोई सुराग नहीं लग सका।



 अभिमन्यु के दादा चुन्नीलाल परिवार संग किसी तरह पंजाब के खन्ना पहुंचे और वहां टैंट में शरण ली उसके बाद वो सब दिल्ली पहुंचे और वहां एक मस्जिद में सिर छुपाने की जगह मिल गई। लेकिन वहां से भी पुलिस ने उन्हें यह कहकर निकाल दिया कि तुम लोग मस्जिद पर कब्जा कर लोगे। चुन्नीलाल किसी तरह अपने परिवार को लेकर मेरठ पहुंचे और यहां लालकुर्ती इलाके में एक किराए का मकान लिया। खाली हाथ मेरठ पहुंचे लाचार चुन्नीलाल को जब परिवार का पेट पालने के लिए कोई सहारा नहीं मिला तो उन्होंने अपना पुश्तैनी काम शुरू किया। चुन्नीलाल का पंजाब में हजारा स्पोर्ट्स के नाम से ब्रांड हुआ करता था। चुन्नीलाल स्पोर्ट्स के जाने-माने कारोबारी हुआ करते थे। मेरठ में भी चुन्नीलाल ने स्पोर्ट्स का काम शुरू कर दिया। चुन्नीलाल ने धीरे-धीरे मेरठ में लोगों को यह काम सिखाया। चुन्नीलाल के बाद उनके बेटे प्रेम सागर ने प्रेम सागर एंड संस के नाम से अपनी कंपनी बनाई जिसको अब उनके बेटे अभिमन्यु संभाल रहे हैं। इस कंपनी में फुटबॉल, वॉलीबॉल, तमाम तरह के नेट और जूते भी बनाए जाते हैं। अभिमन्यु का कहना है कि उत्तर प्रदेश के आगरा के अलावा पंजाब के मलेरकोटला में जूते बनाने का बड़ा काम है। सरकार की एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत अब मेरठ में अभिमन्यु स्पोर्ट्स के जूते बनाने का काम कर रहे हैं। जिससे पंजाब के मलेरकोटला पर खासा असर पड़ेगा। अभिमन्यु का कहना है कि उनका स्पोर्ट्स प्रोडक्ट भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान तक भी सप्लाई किया जाता है।



 एक जिला एक उत्पाद ने दी मेरठ को अलग पहचान 


स्पोर्ट्स कारोबारी सुरेंद्र चड्ढा का कहना है कि पाकिस्तान में उनका स्पोर्ट्स का बड़ा कारोबार था। जब पाकिस्तान में बवाल होने की सुगबुगाहट उनके नौकर के कानों तक पहुंची तो वह तुरंत उनके पिता के पास आया और सारी प्लानिंग से अवगत कराते हुए कहा कि आप तुरंत पाकिस्तान छोड़कर भारत निकल जाओ। सुरेंद्र के पिता यह बात सुनते ही यथावत और यथा समय अपने परिवार को लेकर निकल पड़े। अपने परिवार को किसी तरह मार-काट के बीच गुजरते हुए सुरेंद्र के पिता किसी तरह जम्मू स्थित अपनी ससुराल पहुँचे । लेकिन वहां भी हालात ऐसे ही थी। इसके बाद किसी तरह सुरेंद्र का परिवार मेरठ आया और यहां पर आकर शिफ्ट हो गए। सुरेंद्र का कहना है कि फिर उनके पिता ने यहाँ पर अपना स्पोर्ट का काम शुरू किया। मेहनत और लगन के बाद धीरे-धीरे काम बढ़ता गया। 



 विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की घोषणा कर सरकार ने दी बलिदानियों को सच्ची श्रद्धांजलि 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अगस्त को 2021 को घोषणा की थी कि 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रुप में मनाया जाए। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आवाहन के बाद 14 अगस्त को विभाजन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। जगह जगह मौन जुलूस निकाले जा रहे हैं और विभाजन के समय बलिदान हुए बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी जा रही है। सरकार के इस फैसले से लोगों में काफी खुशी है। लोगों का यही कहना है कि भारत को आजाद हुए 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं लेकिन इससे पहले किसी सरकार ने अभी तक विस्थापित हुए या विभाजन के समय बलिदान हुए लोगों के बारे में नहीं सोचा था। इस सरकार ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस घोषित करके उन लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि दी है




No comments:

Post a Comment

Popular Posts