(गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर विशेष)
`जेहि गावत तुलसी भए, तुलसी तुलसीदास`
- शिवचरण चौहान
भले अन्य रचनाकार अप्रासंगिक हो जाएं किंतु तुलसीदास कभी अप्रासंगिक नहीं होंगे। जबसे तुलसीदास की रामचरितमानस जन-जन में प्रकाश में आई तब से वह राम की ही तरह लोकप्रिय हैं। राम की ही तरह तुलसीदास भी लोक नायक बन गए हैं। गांव-गांव, गली-मोहल्ले उनकी रामचरितमानस का अखंड पाठ होता है। मानस की चौपाइयां, दोहे लोग पूजा में मंत्र की तरह प्रयोग करते हैं। चौपाइयां सुना कर एक दूसरे की शंका का समाधान करते हैं। न जाने कितने लोग, विद्वान राम कथा सुना कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। न जाने कितने हिंदू नहाते समय रामचरितमानस की चौपाइयां गुनगुनाते हैं।
जो तुलसीदास अपनी जिंदगी में कभी ठीक से सम्मान नहीं पा सके आज वह भारत में ही नहीं विदेशों में भी पूजे जाते हैं सम्मानित होते हैं। उनकी प्रतिमाएं लगाई गई हैं और उनके नाम पर कई मोहल्ले बसे हैं। अकादमियां बनी हैं और तुलसी उपवन/तुलसी भवन/ सभागार जैसे सभा मंडप भी बने हैं। जहां-जहां भी हिंदी अवधी, भोजपुरी भाषा भाषी रहते हैं वहां तुलसी हरदम याद किए जाते हैं। उनकी रामचरितमानस पढ़ी सुनाई और गाई जाती है। अंग्रेजों द्वारा गुलामी के दौरान काले पानी को भेजे गए भारती य अपने साथ रामचरितमानस का गुटका लेकर गए थे और गिरमिटिया कह लाए थे। और एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास के सहारे मारिशश जैसे समुद्र के दुर्गम टापुओं में मनुष्य के रहने लायक ठिकाना बना लिया था। यह तुलसीदास की रामचरितमानस की लोकप्रियता ही थी कि आज तक हर कोई उसे अपना आदर्श मानता है।
यद्यपि तुलसी दास के जन्म तिथि और जन्म स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। इसके बावजूद सावन शुक्ला सप्तमी को ही तुलसी जयंती मनाई जाती हैं। मानस संगम कानपुर और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान सहित कई स्थानों में भी सावन शुक्ला सप्तमी को ही तुलसी जयंती मनाई जाती है। दरअसल विवाद इस कारण हुआ की कुछ लोगों ने तुलसीदास के जीवन मरण पर दोहे बना दिए। जिन ब्राह्मणों ने जीवन भर तुलसी का विरोध किया और तुलसी की हत्या का प्रयास किया और तुलसीदास के धोखे तुलसी के आश्रय दाता भदैनी वाराणसी के जमींदार ठाकुर टोडर सिंह की हत्या कर दी। उन्हीं पाखंडियों ने तुलसी की जीवनी भी विवादित कर दी। अब जब की बहुत चीजे सामने आ गई है तो उत्तर प्रदेश सरकार व अनेक संस्थाएं सावन शुक्ला सप्तमी को तुलसी जयंती मनाते हैं।
श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी धरयो शरीर।।
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