गोस्वामी जी का ऋणी है साहित्य जगत

- प्रो नंदलाल मिश्र
पूरे देश में गोस्वामी जी की जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। गोस्वामी जी एक देव पुरुष थे जिनका जन्म चित्रकूट जिले के राजापुर कस्बे में हुआ था। राजापुर अत्यंत अविकसित स्थान है जो यमुना नदी के तट पर बसा है। हम लोगों का सौभाग्य है कि उस स्थान को बार बार देखने का अवसर प्राप्त होता है क्योंकि हम लोग चित्रकूट में निवास करते हैं और राजापुर चित्रकूट से महज तीस बत्तीस किलोमीटर की दूरी पर है। चित्रकूट और राजापुर दोनो का अन्योनाश्रित संबंध है। जिस भगवान प्रभु श्री राम की कथा को तुलसीदास जी ने जन जन तक पहुंचाया है उसी कथा के नायक प्रभुश्रीराम साढ़े ग्यारह वर्ष तक अपने वनवास का समय इसी चित्रकूट में बिताया है। चित्रकूट का एक एक कण प्रभु से उपकृत है।चित्रकूट में ही प्रभु ने गोस्वामी जी को साक्षात दर्शन दिए हैं।
       चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर
        तुलसी दास चंदन घिसे तिलक देत रघुबीर।

  भगवान ने अपने कर कमलों से गोस्वामी जी को तिलक किया हैं।धन्य हैं तुलसीदास जी जिनको प्रभु ने अपना दर्शन दिया और उन्हें अमर कर दिया।
      अनेक दुखों और झंझावातों को झेलते हुए तुलसीदास जी को सिर्फ एक ही धुन सवार था जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिए ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही। गोस्वामी जी अपने आराध्य प्रभु श्रीराम पर अनेको रचनाएं की तथा उन रचनाओं को सम्पूर्ण जगत में पहुंचा दिया। उनकी अलौकिक रचना श्रीराम चरित मानस ऐसी कृति है जो सम्पूर्ण वेदों पुराणों निगमों आगमो सभी का निचोड़ है और उसका प्रस्तुतीकरण इतने सरल शब्दों में किया कि उसे बच्चे से लेकर बूढ़े सभी आनंदपूर्वक पढ़ते है और उससे अपना जीवन धन्य करते हैं। गोस्वामी जी ने अपने ग्रंथों को इतने सरल शब्दों में मूर्त रूप दिया है कि उसे कोई भी आसानी से ग्रहण कर सकता है। तुलसीदास जी किसी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण नहीं किए थे और न तो किसी श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे। यह तो उनकी धुन और हनुमान जी की उन पर अहैतुकी कृपा का यह प्रतिफल है कि उन्होंने विश्व को ऐसे ऐसे ग्रंथ दिए जो व्यक्ति समाज कुटुंब और संस्कृति में चार चांद लगा सकते हैं।इतना ही नहीं श्रीराम चरित मानस की एक एक चौपाइयां अपने आप में महामंत्र हैं।
      आप स्वयं देखते होंगे कि कोई श्री रामचरित मानस का अखंड पाठ करता है तो कोई एक चौपाई को महामंत्र के रूप में सतत जपता रहता है। उस अद्भुत ग्रंथ को पढ़कर कितने लोगों ने बताया सन्यास ले लिया तो कितने  उसके दीवाने हो गए। आज हजारों लोग रामायण की कथा सुनाने वाले कथाकार हो गए तो कितनों ने उससे अपने जीवन शैली को बदल डाला। यहां यह कहने में कोई संकोच नहीं कि संस्कृत भाषा की अवज्ञा से या उसको दर किनार किए जाने से संस्कृत के जानकारों की संख्या बहुत अधिक सिमट गई। फलस्वरूप वेदों पुराणों ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों को जानने और उसमे रुचि लेने वाले सीमित हो गए। अन्यथा अध्यात्म जो मनुष्यों के पुरुषार्थ चतुष्टय को साधता है उससे लोग लाभान्वित होते पर शायद इस पर ध्यान देने वाला कोई नहीं।
आज गोस्वामी जी का राम चरित मानस जो हिंदी में है और सरल है आम लोगो के लिए है। न होता तो शायद हम आध्यात्मिक ज्ञान से मीलों दूर रहते।
समाज और संस्कृति के नाम पर जो बचा है वह महामानव देवतुल्य श्री गोस्वामी तुलसी दास जी की अमर कृति श्री राम चरित मानस ही है जो आम लोगो को जीने का तरीका बताता है।समाज में जो बचे खुचे मूल्य हैं वे उसी कारण हैं। सौख्य भाई चारा त्याग तपस्या पितृ भक्ति मातृ भक्ति सहिष्णुता ये अभी इसीलिए बचे हैं कि हमारे घरों में रामचरित मानस का प्रतिदिन पाठ होता है।
         समाज में अंधकार व्याप्त है। कहीं से कोई आशा की लौ दिखाई नहीं पड़ती। बलात्कार, आत्महत्या, हिंसा, चोरी भ्रष्टाचार जमाखोरी, लूट खसोट आपसी रंजिश, भाई भाई की दुश्मनी स्वार्थ सर्वत्र बढ़ रहे हैं। ऐसे में नियंत्रक के रूप में आज राम चरित मानस की भूमिका ही दिखाई पड़ती है। विज्ञान जगत के चमत्कार और प्रौद्योगिकी की सफलता ने देश में पश्चिमी सभ्यता में वृद्धि की है।स्वार्थ में मानव इतना अंधा हो चुका है कि देश के नीति निर्धारकों मंत्रियों के यहां अकूत संपदा छिपा के रखी गई है जो छापेमारी में सामने आ रही है।
अभी तो दो चार मंत्री के नाम सामने आ रहे हैं। यदि ध्यान से नब्बे प्रतिशत मंत्रियों ठेकेदारों इंजीनियरों डाक्टरों के यहां कायदे से रेड पड़े तो इनके चेहरे बेनकाब हो जायेंगे। मेरा मकसद इन भ्रष्ट लोगों से नही है अपितु यह इंगित करना है कि समाज के अगली पंक्ति के लोग समाज को किस तरह गलत रास्ता दिखा रहे हैं और उन्हें उन गलत रास्तों पर ले जा रहे हैं। धन्य हैं गोस्वामी जी जिन्होंने अपनी अद्भुत रचना से समाज के आम लोगो में ऐसे मूल्यों को जन्म दिया है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी से उपजे विषाक्त माहौल में कोसों दूर रहते हुए आध्यात्म और धर्म का अलख जगा रहे हैं।
            समाज और संस्कृति में हो रहे अनियंत्रित परिवर्तन से समाज में विषमताएं बढ़ रही हैं। हम लोग कहा करते थे कि वैश्विक स्थिति ऐसी बन गई है की विश्व की बीस प्रतिशत आबादी अस्सी प्रतिशत संसाधनों का उपभोग कर रही है जबकि अस्सी प्रतिशत आबादी केवल बीस प्रतिशत संसाधनों से अपना गुजारा कर रही है।आज यही स्थिति भारत वर्ष में भी देखने में आ रही है।कुछ चंद लोग नोटों की गड्डियों पर सो रहे हैं तो कोई दो जून रोटी के लिए परेशान हैं। अमीर दिन दोगुना रात चौगुना के हिसाब से बढ़ रहे हैं तो कोई दो वक्त की रोटी का प्रबंध नहीं कर पा रहा है।वह किस तरह जिंदा है यह सोचनीय विषय है।
ऐसे में गोस्वामी जी ने रामचरित मानस के माध्यम से जो बीज मंत्र समाज को दिया  है उसी को आधार बनाकर लोग जीने का मार्ग अपनाते हैं। इनकी कृतियों ने जन जन में ऐसा स्थाई भाव पैदा किया है जो संतोष के रास्ते पर ले जाता है।लौकिक और पारलौकिक लक्ष्य को ढूंढता मानव श्री रामचरित मानस को आधार मानते हुए अपनी वैतरणी पार कर रहा है।
(महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट, सतना)।

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