बेखुदी का आलम

बेखुदी का आलम कुछ इस तरह बनाया गया,
चमकते सितारे, सुगन्धित फूलों से सजाया गया।
 फूलों कि खुश्बू से मानो,झूमने लगे हम अब तो,
ना जाने क्यों ऐसा खूबसूरत जाल बिछाया गया।।

लगता है मेरे चारो ओर इश्क का आग जल रहा,
बुझाऊँ तो कैसे, प्रेम का दरिया नजर नहीं आ रहा।
छुप के जा बैठी हो प्रेम वृक्ष के जिस डाली पे तुम,
पता नहीं तुम्हे उस डाल पे, प्रेम घर बनाया जा रहा।।

बेखुदी का आलम कुछ इस तरह से बनाया गया,
संगमरमर के पत्थर को, काट के जैसे तराशा गया।
बेआबरू होकर हम,रुख़सत जो हुए तुम्हारे दर से,
मुस्कुराने कि उम्मीद खो गई,जीने का सहारा गया।।

किस्मत कि धनी है वो, कुदरत कि मेहरबानी भी है,
हम तो अपने दिल से हारे, मोहब्बत कि कुर्बानी भी है।
हँसता हुआ मुखड़ा तेरा,हर पल मुझे याद आयेगा,
साथ जो मेरे हरपल, तेरी चाहत कि निशानी भी है।।




बेखुदी का आलम कुछ इस तरह से बनाया गया,
बता, जीते जी हमको, क्यों श्मशान ले जाया गया।
चैन से सो जाते हम खुद, दो गज ज़मीन के नीचे,
रुसवाई होगी तेरी, आशिक को ऐसे जो दफनाया गया।।

बेखुदी का आलम कुछ इस तरह से बनाया गया,
धूल बन उड़ गया जिस्म मेरा, तुझसे ना अपनाया गया।
आकर मेरे कब्र मे, क्यों मुझे फिर जगाने आ गई,
कैद कर रूह को मेरे,क्या मिला जो मुझे सताया गया।।
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- नितेश कुमार दिवाकर



बैकुंठपुर, छत्तीसगढ़ 



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