बारिधि तपत तेल जनु बरिसा

- शिवचरण चौहान, कानपुर।
आषाढ़ आधा समाप्त हो गया है। आषाढी अमावस्या बीत चुकी है। आसमान से सूरज अंगारे बरसा रहा है लग रहा है जैसे आसमान से गर्म तेल बरस रहा है। आषाढ में इतनी उमस चिपचिपी वाली गर्मी तो सवा सौ साल में नहीं पड़ी। जो 2022  में पड़ रही है।  मौसम विभाग रोज रोज भारी बरसात की चेतावनी जारी कर रहा है किंतु बादल  हैं तो ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई की अर्धाली याद आती है-
  बारिधि तपत तेल जनु बरिसा।
आसमान से कढ़ाई में गर्म किया हुआ तेल जैसे बरसाया जा रहा हो ऐसे ही गर्मी पड़ रही है। जीव जंतु मनुष्य पेड़ पौधे और सारी प्रकृति बेहाल है।
 कृषि विभाग ने कहा है कि अगर बरसात नहीं हुई तो उत्तर प्रदेश के 67 जिले सूखे की चपेट में आ सकते हैं। जून में 90 प्रतिशत कम बारिश हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार कुछ जिले, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश के कई जिले और पंजाब और दिल्ली इस समय सूखे की मार झेल रहे हैं।



किसानों की धान की बेड़न सूख रही है। इतनी भयंकर गर्मी उमस वाली गर्मी पिछले 112 साल में नहीं पड़ी।
 मौसम विभाग की सारी घोषणाएं झूठी साबित हो रही है। घाघ भड्डरी की कहावतें गलत निकल गई। वैज्ञानिकों का कहना है ऐसा दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन के कारण हो रहे हैं जलवायु परिवर्तन / ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है। चंद्रमा खिसक रहा है और सूरज में सौर तूफान आ रहा है जो धरती के लिए शुभ संकेत नहीं है। कनाडा जैसे ठंडे देश में पारा 45 के ऊपर जा रहा है। तालाबों , झीलों और यहां तक कि समुद्र तक का पानी सूरज की आग में खौल रहा है। ऐसे में बिजली की कटौती कोढ़ में खाज साबित हो रही है।
  चढ़ा आषाढ गगन घन गाजा - मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत की यह अर्धाली भी गलत साबित हो रही है। कालिदास के हरकारे मेघदूत दगा दे गए। पूरे देश का किसान बादलों की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है बादल है कि बरस कर धरती को तृप्त ही नहीं कर रहे हैं। उल्टे आसमान से गर्म तेल बरसा रहे हैं। दिल्ली में पीने के पानी का संकट है यमुना सूख गई है और भूगर्भ जलस्तर  नीचे चला गया है कि पानी प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। ऐसा हाल कमोबेश पूरे भारत का होने वाला है।
 पहले तालाब और झील गांव हर गांव में होते थे जिससे भूगर्भ जल संतुलन बना रहता था। बरसात का पानी गांव के तालाबों में भर जाता था और जमीन के नीचे पानी की कमी नहीं होती थी। सरकार की गलत नीतियों के कारण रिंग बोर और घर घर सबमर्सिबल पंप लग जाने के कारण भूगर्भ जल समाप्त होने की स्थिति में आ गया है। वैज्ञानिकों ने आधे से ज्यादा भारत को भूगर्भ जल रहित क्षेत्र घोषित किया हुआ है किंतु फिर भी कोई नहीं मानता। रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से भारत की धरती पर बंजर होने का खतरा बढ़ गया है।
पहले लोग गांव गांव में तालाब और झील खुदवाते थे। आज के लोगों ने तालाबों और झीलों को पाटकर अपने घर बना लिया है नदियों को संकरा कर दिया है। पहाड़ों पर बादल फट रहे हैं और मैदानों में धूल उड़ रही है आग बरस रही है। अगर 2022 में आषाढ़  सूखा निकल गया तो भयंकर अकाल पड़ेगा फिर लोग भूख से मरेंगे । हालात अनियंत्रित हो जाएंगे। यह संकट यकायक नहीं आ गया है। मानव जाति का लाया हुआ है। हम इतने विकासशील हो गए हैं कि अपना भला बुरा भूल गये हैं और पर्यावरण को अकल्पनीय  क्षति पहुंचाई। कार्बन गैसों का इतना उत्सर्जन किया की हमारी जलवायु खराब हो गई। पर्यावरण बिगड़ गया और आज हम  रोने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
भीषण गर्मी और आसन्न अकाल का संकट देख कर भी हमारी सरकार कुछ नहीं कर रही है। हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कैसे चुनाव में जनता को बेवकूफ बना कर सत्ता हथिया ले इसको लेकर सरकार की बैठकें चलती रहती  हैं। पर अगर अकाल पड़ गया तो कैसे निपटेंगे इसको लेकर कोई  सुगबुगाहट नहीं है ।
भयंकर अकाल को देखकर कभी  प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रताप नारायण मिश्र ने लिखा था ज्वार की पत्तियां सूरज की गर्मी में सूखकर बत्तियां बन गई है। आज यही हाल है। बिहार उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राजस्थान हरियाणा पंजाब दिल्ली जहां-जहां भी धान की खेती होती है वहां के किसान धान की बेड किसी तरह बचाए हुए हैं। 90 रुपये से ऊपर डीजल का दाम हो गया है और बिजली आती नहीं है तो खेत में पानी किसान कहां से लगाएं। इस साल खेती की लागत बहुत ज्यादा बढ़ जाने वाली है क्योंकि डीजल पहले से बहुत महंगा हो चुका है रासायनिक खाद के दाम आसमान में पहुंच गए हैं और हर क्षेत्र में महंगाई है।  अगर सूखा पड़ गया तो अकाल सारे भारत को प्रभावित करेगा अभी तो सरकार 5 किलो गेहूं चावल देकर गरीब जनता को जिलाए हुए हैं जब धान ही नहीं होगा तो चावल कहां से आएगा। ज्वार बाजरा मक्का पहले ही सूखे जा रहे हैं। पूरी खरीफ की फसल संकट में पड़ी है पर किसान के अलावा किसी को चिंता नहीं है। 2022 में किसान गेहूं की खरीद लक्ष्य के अनुसार नहीं कर पाई है। रूसी हो कौन युद्ध के कारण दुनिया भर में गेहूं चावल की मांग बढ़ी है।
बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून मध्यम पड़ गया है। इस बार मार्च मई जून में भयंकर गर्मी पड़ी। गेहूं का दाना सूखकर पतला हो गया।  आषाढ में गर्मी में एक शताब्दी के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया।  समय रहते सरकार को आने वाले सूखे और अकाल को लेकर योजनाएं बनानी चाहिए। भारतीय कृषि तो सदियों से मानसून का जुआ रही है। इंद्रदेव मेहरबान हुए तो ठीक वरना किसान के माथे पर बर्बादी लिखी होती है।
सूनी आंखें देख रही हैं बादल का आना जाना।
(लेखक स्वतंत्र विचारक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

No comments:

Post a Comment

Popular Posts