बेमोल नहीं, अनमोल बेटियां

- नाजरीन अंसारी
बेटियों की दास्ताँ कैसे बयां करूँ मैं। तुम एक फूल की तरह प्यारी और खूबसूरत हो। सदियों से लोग तुम्हारा अपमान करते आ रहे थे। जब पहले की बातें सुनती हूं तो मन अत्यंत दुख के सागर में डूब जाता है। जब बेटियों को पैदा होते ही मिट्टी में दफन कर दिया जाता था।  बेटियों के पैदा होने पर घर में मातम छा जाता था। कितने पुरुष तो दूसरा विवाह तक कर लेते थे। ना समझ लोग सारा दोष स्त्री के सिर पर मढ़ दिया करते हैं और खुद को न जाने कहां के तीस मार खां समझते थे।
 उस समय में बेटी का पैदा होना ही अभिशाप था। ना जाने कितने अत्याचार सहन करती रही हैं। उनके कष्टों की सूची बहुत लंबी है और बहुत दुखदाई भी, क्योंकि बेटियों का इतना अनादर, इतनी अवहेलना, इतना तुच्छपना होता रहा जिसके बिना सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती। उसका ऐसा तिरस्कार, ऐसी अमानवीयता, ऐसी अभद्रता क्यों आखिर क्यों होती रही ?


सदियों से यह सब स्त्रियों के साथ ही क्यों? पुरुषों के साथ क्यों नहीं? समझ में नहीं आता स्त्रियों से ही इतना बैर क्यों रहा लोगों को? स्त्रियां ही क्यों दुराचार सहती रहीं, उनकी तकलीफ को क्यों कोई महसूस नहीं करता था? क्यों देख कर लोगअनदेखा करते रहे? क्या वह इंसान नहीं हैं या उस समय स्त्रियों को इंसान समझा ही नहीं जाता था। आज भी बहुत लोग हैं जो बेटी हो तो गर्भपात करवा देते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जो बेटी- बेटा में फ़र्क़ करते हैं।
 मेरी समझ में तो यह नहीं आता कि यह फ़र्क़ करने वाले लोग क्या समझते हैं, क्यों बेटी को कम आंकने में लगे रहते हैं जबकि बेटियां कहीं-कहीं तो बेटों से भी ज्यादा अपनी जिम्मेदारियां निभाती हैं। ससुराल की तो करती ही हैं लेकिन मायके में भी अपने माता-पिता का हर तरह से सहयोग करती हैं। उनकी हर परेशानी के साथ खड़ी होती हैं। अपना दायित्व निभाने में एक पल भी पीछे नहीं हटतीं।
 खैर समय बदला, बहुत बदल गया, आज हमारे समाज में बेटियों का बहुत ऊंचा स्थान है। समाज में तो है ही क्योंकि सबसे पहले उसके परिवार में उसका बहुत महत्व है। अब तो बेटियां हर घर की शान हैं, अपने परिवार का गौरव हैं। हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं और लगातार आगे बढ़ रही हैं।  ऐसा कोई काम नहीं है जो बेटियां नहीं कर सकतीं। वह कर रही हैं हर नामुमकिन को मुमकिन बना रही हैं। किसी भी क्षेत्र में वह जो भी काम कर रही हैं उसमें वह पूरी तरह सक्षम हैं और सुदृढ़ भी। बेटियों को धूल समझने वाले बेटियां तो एक फूल हैं। उसकी खुशबू से सारा वातावरण महक रहा है।
 वह गुणों की खान हैं, हम सबका अभिमान हैं, दिवाली की जगमगाती दीप हैं बेटियां, होली के सारे रंगों की रंगोली हैं बेटियां, रक्षाबंधन में भाई की प्रतीक हैं बेटियां, करवा चौथ में पति का वरदान हैं, माँ-बाप के आँगन की उपहार हैं बेटियां, हर रंग में, हर रीत में सराबोर हैं बेटियां, बेटियां तो वह कोहिनूर हैं जिसकी चमक से सारा आलम जगमगा रहा है।
 बेटियां दौड़ रही हैं और छलांग लगा रही हैं। उनके अंदर हौसलों की उड़ान है, जुनून का अंबार है, वह तो अपना परचम लहराएंगी, रास्ते के पत्थर को हटा देंगी, पैरों के छाले को मिटा देंगी, पर्वत भी लांघ जाएंगी और लहरों से भी खेल जाएंगी। उनके मन में अनगिनत शोर है, कुछ कर जाएंगे, कुछ पा लेंगे, हम बेटियां हैं शक्तिशाली, ऐसाअहसास सब को करा देंगे। आज जब बेटियों को ऐसे चहकते देखती हूं, तो मन खुशी से झूम जाता है। आज बेटियां स्वतंत्र हैं, अपने पंखों को फैलाए खुले आकाश में उड़ रही हैं। उन्मुक्त हैं हर पिछड़ी सोच से, जागरूक हैं हर दबी कमज़ोरी से, सम्मान से और गर्व से भारवान हैं बेटियां।

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