उमड़-घुमड़ कर बादल आये

कानों में बजने लगे, मधुरिम ढोल-मृदंग ।
लेकर बादल आ गए, मन में नई उमंग ।
मन में नई उमंग, सँदेशा प्रिय का लाये ।
उमड़-घुमड़ धनश्याम, आज हैं देखो आए ।
कह 'कोमल' कविराय, मधुर रस है गानों में ।
रस घुलता स्वर राग, आजकल इन कानों में ।



करते हैं नादानियाँ, देखो बादल आज ।
गरज-घुमड़ कर झूम कर, बजा रहे हैं साज ।
बजा रहे हैं साज, मुझे रह-रह तड़पाते ।
मुझ विरहन को देख, देख बिजली चमकाते ।
कह 'कोमल' कविराय, अश्रु नयनों से झरते ।
किन्तु न बरसें मेघ, खूब अठखेली करते ।
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- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
जिला-भिण्ड (मप्र)।

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