युद्ध काल की बेबसी
यूक्रेन पर रूसी सेना के हमलों के रविवार को दस दिन पूरे हो गए। युद्धविराम के लिए लगातार कोशिश हो रही हैं लेकिन वे सफल नहीं हो रहीं। पुतिन का जवाब है कि यूक्रेन के हथियार मुक्त करने से कम पर बात नहीं बनेगी। यूक्रेन झुकने को तैयार नहीं। हालात यह है कि राजधानी कीव सहित यूक्रेन के ज्यादातर शहरों में रूस के हमलों से तबाही जारी है। जमीनी और हवाई हमलों के बीच लोग घरों में फंसे हैं। आपूर्ति व्यवस्था भंग होने से उन्हें खाने-पीने के सामान और अन्य जरूरी सामान की किल्लत महसूस हो रही है। भीषण ठंड के मौसम में बिजली और गैस की कमी बच्चे और बुजुर्गो के लिए जान को खतरा पैदा कर रही है। यूक्रेन में सब कुछ ठप पड़ा है। कई शहर वीरान हो चुके हैं। न जाने कितनी बस्तियां ध्वस्त हो चुकी हैं। अब तक कितने लोग मारे जा चुके हैं, सही-सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। डर यह भी है कि जंग लंबी खिंची और इसमें कुछ और ताकतवर देश शामिल हो गए तो क्या पता परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हो और पूरा यूक्रेन ही तबाह हो जाए। इस भय से लोग अपना वतन छोड़ कर दूसरे देशों में शरण पाने निकल पड़े हैं। बताया जा रहा है कि अब तक करीब दस लाख लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं। दूसरे देशों के नागरिकों को वहां से निकालने की भगदड़ मची हुई है। मगर उन बेबस और लाचार लोगों का क्या, जो न तो अपना वतन छोड़ना चाहते हैं और चाहें भी तो नहीं छोड़ सकते हैं। उनके पास देश से बाहर निकलने के साधन नहीं। जिन लोगों ने बड़े जतन से पाई-पाई जोड़ कर अपने सपनों के घर बनाए थे, उन्हें रूसी बमों से ध्वस्त होते अपनी आंखों से देख रहे हैं। युद्ध के इस माहौल में न तो दुकानें खुल पा रही हैं न बाहर से आवश्यक वस्तुओं की पहुंच सुनिश्चित हो पा रही है। लोग भूख-प्यास से तड़पने को मजबूर हैं। अस्पतालों का कामकाज भी ठप है। इस तरह गोलाबारी में घायल हुए लोगों को इलाज भी नहीं मिल पा रहा। न जाने कितने बच्चों ने अपने मां-बाप खो दिए होंगे। रूस और यूक्रेन के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है, मगर बेनतीजा। लगता है कि यूक्रेन रूस और अमरीका सरीखी महाशक्तियों के बीच एक नया ‘कुरुक्षेत्र’ बन गया है।देशों की अलग-अलग लामबंदी के मद्देनजर यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज़ पर खड़ी है?
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