परिणाम केवल किताबों तक ही सीमित ना हो

रजोनिवृत्ति से संबंधित मनोवैज्ञानिक समस्याएं एवं उनके समाधान" विषय पर एक ऑनलाइन अतिथि व्याख्याआयोजित

मेरठ- मनोविज्ञान विभाग, ccs विश्व विद्यालय एवं मेंटल हेल्थ मिशन इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में विश्व महिला दिवस के अवसर पर न  "रजोनिवृत्ति से संबंधित मनोवैज्ञानिक समस्याएं एवं उनके समाधान" विषय पर एक ऑनलाइन अतिथि व्याख्याआयोजित किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में कला संकाय अध्यक्ष, प्रोफेसर एन0 सी0 लोहानी उपस्थित रहे व अतिथि वक्ता के रूप में संपूर्ण मनोस्थिति संस्था, नई दिल्ली की अध्यक्षा यशस्विनी बक्शी रहीं एवं संयोजक के रूप में प्रोफेसर संजय कुमार, मनोविज्ञान विभाग रहे। विशेष अतिथि प्रो0 लोहानी ने कहा कि हम शिक्षक के रूप में कई विषयों पर शोध करते हैं लेकिन शोध द्वारा परिणाम केवल किताबों तक ही सीमित ना हो बल्कि सा प्राप्तमान्य जनता की ऐसी समस्याएं जिनके बारे में लोग बात नहीं करते या करना नहीं चाहते उन विषयों को भी शैक्षिक संस्थानों एवं विश्वविद्यालय के माध्यम से अतिथि व्याख्यान या कार्यशालाओं के रूप में भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि सामान्य जन तक महिलाओं से संबंधित ऐसे विषय हैं जिन पर लोग बात नहीं करना चाहते उनके बारे में भी लोगों को जागरूकता प्राप्त हो। अतिथि व्याख्यान देते हुए अश्विनी बक्शी ने कहा कि रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज उम्र के विभिन्न स्तरों में से ही एक सामान्य स्थिति है जिसमें कि महिलाओं में प्रजनन क्षमता का रुकना मात्र होता है और यह कोई बीमारी नहीं होती है, जो कि हर स्त्री में अलग-अलग उम्र, समय और अलग अनुभवों के साथ होती है। जब ऐसी स्थिति मीनोपॉज के सही समय जोकि 44-48 साल की हो सकती है से कई साल पहले आती है तो इसे प्रीमीनोपॉज बोलते हैं और जब यह सही समय के बाद में पैदा होती है तो उसे पोस्ट मेनोपॉज बोलते हैं।

उन्होने कहा कि ऐसी स्थिति में हार्मोन की बदलाव की वजह से महिलायें कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक अनुभव करती हैं। परंतु ऐसी महिलाएं जिनके पास परिवार का पूर्ण सहयोग हो, स्वस्थ भोजन लेती हों एवं अच्छी जीवन शैली जीती हों उनमें मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक समस्याएं कम होती है। परन्तु जो महिलाएं पहले से ही किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी का शिकार हों, समय से व पोषित भोजन नहीं लेती हैं, योगा मेडिटेशन नहीं करती हैं, नींद पूरी नहीं लेतीं हैं व दवाओं का उपयोग ज्यादा करतीं हैं और उनके पारिवारिक संबंध अच्छे नहीं होते, ऐसी महिलाओ  को कई तरीके की मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं जैसे, हॉट फ्लैशेस होना, बेबजह ज्यादा पसीना आना, छोटी-छोटी बात पर चिढ़ना, गुस्सा आना, जल्दी दुःखी हो जाना, एवं छोटे-छोटे दबाव पर ज्यादा परेशान होना व मूड में जल्दी-जल्दी बदलाव आदि देखने को मिलते हैं। इसके लिए उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं को अपने परिवार के साथ अच्छे संबंध बनाने के प्रयास करने चाहिए स्वयं मे खुश रहने के तरीके खोजने चाहिए, वे रात को पूरी नींद लें, सवेरे एक्सरसाइज करें जो कि ऐसी स्थिति से निकलने में बहुत सहायक होती है, पोषित भोजन लें जिससे कि ऐसी स्थितियों का शरीर ठीक से सामना कर पाये। इसके लिए यदि साइकोलॉजिस्ट की सहायता की आवश्यकता होती है तो उन्हें भी लिया जा सकता है। अंत में कार्यक्रम का समापन प्रोफेसर संजय कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन से किया व संचालन स्वाती यादव ने किया। इस दौरान प्रो0 अल्पना अग्रवाल, प्रो0 स्नेहलता जसवाल, रितिका सोनी, डा0 खोकर आदि उपस्थित रहे।

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