सांची प्रीत जोड़ ले, अंतस से प्रेम कर, प्यार दे,
चार दिन की जिन्दगी में अपना कल संवार ले।

दिल दुखाया दूसरे का छल कपट तकरार से,
बीत गया सारा जीवन, निंदा रस में बेकरार से।
दादुर सम कुएं का मेंढक, बन जिंदगी गुजार दी,
अधखुली आंखों के सपनों में धूल की गुबार दी।
मन दर्पण यदि है निर्मल, प्राण धन सुख करार ले।
चार दिन की जिन्दगी में, अपना कल संवार ले..



ज्योति रूप आत्मा, छियासी योजन पथ का पार,
धर्म कर्म पुण्य कसौटी, होगी वैतरणी नदियाँ पार।
पल छिन, पहर, दिन रैन, एक पल की नहीं है खबर,
साँस के निकलते ही, यम फाँस से बदलेगी डगर।
तोड़ दे माया के बँधन, चुनर हरि रंग से  निखार ले,
चार दिन की जिन्दगी में, अपना कल संवार ले।

चोला यहीं रह जायेगा, पिंजरा पंछी छोड़ जायेगा,
क्षणभंगुर इस जीवन में, घट सांसों का फूट जायेगा।
फूटेगा जब कुम्भ ये, पंच प्राण जल में समा जायेगा,
ईश्वर अंश जीव अविनाशी है, ईश में मिल जायेगा।
जिंदगी के उपवन को खिली बसंत सी बहार दे,
चार दिन की जिन्दगी में, अपना कल संवार ले।
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- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ, कैंट (उ.प्र.)।

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