तुम देख लेना

तुम देख लेना
एक दिन मेरी कविताओं से
क्रांति पैदा होगी।
एक दिन मेरी कविताएं
लोगो के बदलाव का
कारण बनेगी।



जिस दिन लोग गंभीर होकर
मेरी कविताओं को पढ़कर
अकेले में मंथन करेंगे।
उनके सीने में दबी चिंगारियां
सुलगने लगेगी
ओर बदलाव की हवा चलेगी
बस यही से क्रांति की शुरुआत होगी।
तुम देख लेना.....

मेरी कविता अगर
एक को भी बदल पाए
एक मे भी अगर क्रांति
पैदा कर पाए
वही मेरा पुरस्कार होगा।
ये जो आज
मेरी कविता सुनकर
तालियाँ बजाते है।
एक कान से सुनकर
दूसरे कान से निकाल देते है।
ओर फिर भूल जाते है ।
ये मेरा पुरस्कार नही है।
तुम देख लेना....

एक दिन बिना मूहर्त के
में चला जाऊंगा।
मगर मेरी कविताओं में
सदा में आप लोगो के
 बीच रहूंगा
में ना रहूंगा मगर मेरी कविताये
सदा आप लोगो के बीच रहेगी।
उस क्रांति के इंतजार में,
जब आप लोग जागोगे ।
बदलाव की बयार चलेगी
ओर धीरे धीरे क्रांति की
आग सुलगेगी।
तुम देख लेना.....

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- कमल राठौर साहिल
शिवपुर, (म.प्र.)।


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