मेरठ । हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मैं  हिंदी दी साहित्य की प्रख्यात लेखिका होमवती के जन्म दिवस के अवसर पर आयोजित गोष्ठी में विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे।

डॉ॰ ललिता यादव ने कहा प्रसिद्ध लेखिका होमवती देवी पित्तृसत्तात्मक पारंपरिक उत्तराधिकार जो केवल पुत्र को ही प्राप्त हो सकता है, को अपनी कहानियों का विषय बनाती हैं। जहाँ स्त्री जीवन की सार्थकता केवल पुत्र उत्पन्न कराना ही रह जाता है। स्त्री जीवन के ऐसे अनछुए पहूलों पर लिखना होमवती देवी को एक महान लेखिका बनाता है। प्रो॰ जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा प्रेमचंद के समय में भी लगभग 1 दर्जन से अधिक महिला लेखिका लिख रही थी जिनका कहीं कोई जिक्र नहीं है। ऐसी ही लेखिका होमवती जी है जो बडे़ प्रभावशाली ढंग से आपने समय मे लिख रही थी। इनके दौर मे स्त्री दर्पण जैसी पत्रिका निकल रही थी। इस काल मे केवल स्वाधीनता का प्रश्न नहीं इस काल में स्त्री स्वाधीनता का प्रश्न था जब स्त्री पुरूष सत्तात्मकता के विरोध मे खडी थी। उस समय बेलमेल विवाह, पितृसत्तात्मकता से विरोध में लिखना बडी बात थी। यह लिखने की वजह यह थी इस तरह समाज बदले और उसकी सोच बदले। होमवती जैसी रचनाकारों के याद करना उनके महत्व को याद करना उनके संघर्षो को महत्व देना है। उनकी कहानियों का प्रभाव बहुत संश्लिष्ट है जो बहुत चेतना की मांग करती है। शोधार्थीयों से उम्मीद की जानी चाहिए कि जो रचनाऐ या रचनाकार कहीं खो गये है उनको ढूंढ कर प्रकाश में लाये, उनको वह महत्व मिले जिसके वे हकदार हैं।

डॉ॰ प्रज्ञा पाठक ने कहा कि होमवती जी से जुडा बेहद महत्वपूर्ण प्रसंग प्रस्तुत करूंगी। इसी हिंदी विभाग ने मुझे होमवती जी पर लिखने के लिए प्रेरित किया। हिंदी दिवस के अवसर पर प्रो॰ केदार के भाषण से मुझे होमवती जी पर लिखने के सूत्र मिले। होमवती पर लिखने के लिए मेरी चेतना इसी हिंदी विभाग से ही जाग्रत हुई। इसी क्रम में वटुक जी ने बताया कि न्यूयॉर्क से प्रकाशित एक पत्रिका में पूरे विश्व की स्त्री लेखिकाओं में दो महिला लेखिका होमवती व कमला देवी थी। होमवती जी का जन्म मेरठ मे हुआ था बहुत ही कम उम्र मे डॉ॰ चिरंजीवी से उनका विवाह हुआ है। परन्तु इसी बीच उनका साहित्य लेखन चलता रहा। उस जमानें मे भारतेन्दु ने अपने मंडल द्वारा था उसी प्रकार मेरठ मे मेरठ हिंदी साहित्य परिषद के रूप मे एक मंडल स्थापित हुआ। जिसकी केन्द्र मे अज्ञेप थे। इस पूरे संगठन को सम्भालने का काम होमवती जी ने किया था। उनकी अनेक कविता वे कहानी संग्रह है। उनकी कहानियों की दुिनया उनके परिवेश व नीजी जीवन से जुडा था। उस समय पुरूषों के विवाह की कोई उम्र नहीं होती थी। इस कारण विधवाओं की संख्या बहुत अधिक थी। जब होमवती जी का देहान्त हुआ तब अज्ञेय जी ने एक स्मृति ग्रंथ छापा। जिसमें अनेक लेखकों ने लिखा। उनकी कहानी पर सिन्दूर फिल्म बनी। उस समय स्त्री-पुरूष प्रेम जैसे विषय पर लिखना बहुत ही क्रांतिकारी था। ये अपने समय को समस्याओं को बडी प्रखरता से उल्लेखित करती है। होमवती जी के घर के लोग मेरठ के लोग उन्हें नहीं जानते यह बडी दुःखद बात हैं। इस तरह उनके नाम की गायब हो जाना सहज नहीं हैं

गोष्ठी में डॉ॰ रवीन्द्र कुमार, डॉ॰ विद्यासागर सिंह, डॉ॰ प्रवीण कटारिया, डॉ॰ यज्ञेश कुमार, योगेन्द्र सिंह एवं हिंदी विभाग के विद्यार्थियों एवं शोधार्थी शामिल रहे।

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