- प्रभुनाथ शुक्ल
दिल्ली में प्रदूषण बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। ठंड की दस्तक के साथ ही वायु प्रदूषण ने अपना करिश्मा दिखाना शुरू कर दिया। वायु प्रदूषण अधिक बढ़ने से लोगों की सांसें थमने लगी हैं। यह मसला साल-दर-साल का है, लेकिन दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए किसी ठोस नीति पर अमल नहीं हुआ। सुप्रीमकोर्ट अक्सर वायु प्रदूषण को लेकर तल्ख़ और गंभीर टिप्पणी करती है, लेकिन बात जहां की तहां रह जाती है।



दिल्ली दुनिया के 10 प्रदूषित शहरों में सबसे अधिक प्रदूषित है। मुंबई और कोलकाता भी इसमें शुमार है।लेकिन दिल्ली जैसे हालात देश के अन्य शहरों के नहीं हैं। प्रदूषण की लड़ाई को राजनीतिक रंग दे दिया गया है। दिल्ली में यमुना की गंदगी, पराली और वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे भी राजनीति के शिकार हैं। जिसकी वजह से कोई ठोसनीति नहीं बन पा रहीं है।
सुप्रीमकोर्ट ने भी माना है कि पराली प्रदूषण की एक वजह हो सकती है, लेकिन सिर्फ पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है ऐसा नहीं है। सीजेआई ने साफ तौर पर कहा कि इसके लिए दूसरे कारण अहम् हैं जिसमें पटाखे, उद्योग-धंधे, निर्माणाधीन कार्य शामिल हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण के हालात इतने बुरे हैं कि सरकार को सात दिन का अवकाश घोषित करना पड़ा है। हवा में एक्यूआई का स्तर 500 तक पहुंच गया है।
लॉकडाउन के बाद स्कूल कॉलेज भी खुल गए हैं। इस दौरान बच्चों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल है। सीजेआई ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि लोग जिंदगी कैसे जिएंगे। प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए तात्कालिक विकल्प खोजने की आवश्यकता है। वायु में बढ़ता प्रदूषण फेफड़ों के संक्रमण बढ़ाएगा और कैंसर जैसी घातक बीमारी का वाहक बनेगा। दिल्ली के हालात इसी तरह बने रहे तो को स्थिति और भी भयानक होगी।
वायु प्रदूषण पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के मुताबित दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली का हिस्सा सिर्फ पांच फीसदी है। इसके बावजूद फिर राजधानी में कोहरा छाया हुआ है। जबकि पीएम 10 का स्तर 320 के करीब और पीएम 2.5 का स्तर 160 के ऊपर दर्ज किया गया।फिर किसानों की पराली कितनी जबाबदेह है यह खुद समझ सकते हैं।
दिल्ली की आबोहवा दमघोंटू हो चुकी है। सांस लेना भी मुश्किल हो चला है। कुछ साल पूर्व एक सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रदूषण की वजह से 40 फीसदी लोग दिल्ली में रहना नहीं चाहते।
दुनियाभर में बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण बड़ी चुनौती बन गया है। दिल्ली में तकरीबन चार साल पूर्व एक करोड़ से अधिक वाहन पंजीकृत थे। इसमें तकरीबन 32 लाख कारें। 66 लाख से अधिक मोटरसाइकिल और स्कूटर थे। दो लाख पच्चीस हजार माल वाहक और 11 लाख से अधिक कैब। जबकि माल वाहक तिपहिया 68 हजार। 35 हजार से अधिक बसें, 31 हजार ई-रिक्शा और 30 हजार मैक्सी कैब शमिल थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहरों को पहले से शामिल कर रखा है, जिसमें दिल्ली चार प्रमुख शहरों में शामिल थी।
प्रदूषण को हमने कभी गम्भीरता से नहीं लिया। कभी चीन और थाईलैण्ड की स्थिति बेहद बुरी थी। लेकिन वहां की सरकारों ने प्रदूषण रोकने और उद्योग से निकले वाले कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए गम्भीरता दिखाई। आधुनिक मशीनें लगाकर शुद्ध हवा का विकल्प खोजा। लेकिन भारत इस तरह का कदम उठाने में नाकाम रहा है। देश के एक पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री कहते थे कि प्रदूषण से बचना है तो गाजर खाएं। यह हास्यास्पद है।
प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त फैसले लेने होंगे। तभी इसका समाधान निकलेगा। हमें नये विकल्प की तलाश करनी होगी।
(स्वतंत्र लेखक और पत्रकार)

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