ग्राम प्रधान व ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को भेजा मांग पत्र

 साजिद कुरैशी सरधना


सरधना
(मेरठ) भांभौरी को शहीद ग्राम का दर्जा दिलाने के सम्बन्ध में ग्राम प्रधान व ग्रामीणों की ओर से जिलाधिकारी को एक मांग पत्र भेजा गया । पत्र में बताया गया कि सरधना तहसील क्षेत्र के गांव भांभौरी का भारत की आजादी में अमूल्य योगदान रहा है। गांव के रहने वाले आजादी के कई मतवालों ने स्वतन्त्रता आन्दोलत में अपने प्राणों की आहूति तक दी है। बताया गया कि 18 अगस्त सन् 1942 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेज सरकार के विरूद्ध भारत छोड़ो आन्दोलन के समर्थन में गांव में स्थित मोटो की चौपाल पर भारत छोड़ो आन्दोलन के समर्थन में गोपनीय सभा बुलाई गई थी । जिसमें काफी लोग मोटो की चौपाल पर इक्ट्ठा होकर आपसी मन्त्रणा कर रहे थे। जिसकी खबर अंग्रेजी हुकमत को किसी तरह से हो गई और उन्होने आन्दोलन को कमजोर करने के उद्देश्य से मोटो की चौपाल को चारों ओर से घेर कर शान्त रूप से सभा कर रहे स्वतन्त्रता सैनानियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी जवाब में सभा कर रहें सैनानियों ने लाठी डंडो से अंग्रेजी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया । 



           इस हत्या काण्ड में प्रहलाद सिंह फतेह सिंह, लटूर सिंह,  बोबल कश्यप की गोलियाँ लगने से मौके पर ही शहीद हो गये थे। जिसे मिनी जलियांवाला कांड के रूप में जाना जाता है अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा किए गए इस हमले में सैकड़ो लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये थे । इन्ही घायलों में गम्भीर रूप से घायल श्री रामस्वरूप शर्मा जो सभा का संचालन कर रहे थे, उनके सहित गम्भीर अवस्था में गिरफ्तार करके ले गये थे जिन्हें कठोर यातनाएँ दी गयी थी। रामस्वरूप शर्मा अंग्रेजो की कस्टडी में ही शहीद हो गये थे। अंग्रेज सरकार द्वारा शहीद हुए रामस्वरूप शर्मा का मृत शरीर भी उनके परिजनों को नहीं सौंपा गया था। अंग्रेजी सरकार द्वारा ग्राम भांभौरी को बागी करार देते हुए एक निश्चित समय पर तौप से उड़ाने का आदेश दिया गया था। 



       उक्त आदेश की जानकारी गांव में होने के उपरान्त समस्त गाँव जान बचाने के उद्देश्य से अपने परिवारों सहित जंगलो में जा छिपे तथा लगभग एक माह तक जंगलों में ही छिपे रहें थे। इसी दौरान कई महिलाएँ जो गर्भवती थी उनके गर्भपात भी हो गये थे और महिलाएं बच्चों को अत्याधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। अंग्रेजी सरकार के आदेशानुसार तोप ग्राम भांभौरी को उड़ाने हेतु छावनी से चली मगर उसके चालक लियाकत अली ने हिंदुस्तान की वफादारी को निभाते हुए अपनी जान को दांव पर लगाकर तोप को ग्राम झिटकरी के रास्ते में बनी  दल दल में फसा दिया था । जिसके कारण निश्चित समय पर ग्राम भांभौरी में तोप नहीं पहुंच पाई और अंग्रेजी अधिकारियों को निर्धारित समय व्यतीत होने के कारण तोप वापिस छावनी में भेजनी पड़ी जिससे ग्राम भांभौरी को तोप से उड़ाने का अंग्रेजो का सपना पूरा नही हो सका था। इसके उपरान्त अंग्रेजी हुकुमत द्वारा गांव के सैकड़ों बेगुनाह लोगों को जेलों में डालकर घोर यातनाएँ दी गई तथा काफी बड़ी मात्रा में हर्जाना वसूला गया तथा आजादी प्राप्त होने तक अंग्रेजी हुकुमत द्वारा ग्रामवासियों को तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त प्रथम प्रधानमंत्री माननीय श्री जवाहर लाल नेहरू जी गांव भांभौरी में शहीदों को श्रद्धाजंलि ओर उनके परिवारों को सान्तवना देने आये थे, तभी से समस्त ग्रामवासी नम आँखो से शहिदों को भावभीनी श्रद्धांजलि देने हेतु प्रतिवर्ष 18 अगस्त को कार्यक्रम करते है। गांव में शहीदों की याद में एक शहीद स्मारक भी बनाया गया था प्रतिवर्ष 18 अगस्त को शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि दी जाती है । जिसमें जिले के शासन प्रशासन के प्रतिनिधि एवं अधिकारी स्वइच्छा से उपस्थित होते हैं मगर गांव के इतने बलिदानों के उपरान्त भी शहीदों के ग्राम भांभौरी को शहीद ग्राम का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। ग्रामवासियों द्वारा समय-समय पर ग्राम भांभौरी को शहीद ग्राम भांभौरी का दर्जा दिलाने हेतु प्रयास किये गये मगर ग्रामवासी अपनी मुहिम में कामयाब नहीं हुए। ग्राम प्रधान दिनेश कुमार सोम व ग्रामीणों ने जिलाधिकारी के. बालाजी से ग्राम भांभौरी को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में सहयोग व बलिदानों को मध्य नजर रखते हुए भांभौरी को शहीद गांव का दर्जा दिलाकर अभिलेखों में दर्ज कराने की मांग की है।


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