जब सिकंदर भारत पर आक्रमण के लिए निकला, तब उसके गुरु अरस्तू ने उसे आदेश दिया कि वह भारत से लौटते समय दो उपहार अवश्य लाए- एक गीता, दूसरा एक दार्शनिक संत; जो वहां की थाती हैं। सिकंदर जब वापस लौटने को था तो उसने अपने सेनापति को आदेश दिया, ‘भारत के किसी संत को ढूंढ़कर ससम्मान ले आओ।’ सैनिक दंडी स्वामी, जिसका उल्लेख ग्रीक भाषा में ‘डायोजिनीज’ के रूप में हुआ है, से मिला। दंडी स्वामी से सिकंदर के दूत ने मिलकर कहा, ‘आप हमारे साथ चलें, सिकंदर महान आपको मालामाल कर देंगे। अपार वैभव आपके चरणों में होगा।’ अपनी सहज मुस्कान में दंडी स्वामी ने उत्तर दिया, ‘हमारे रहने के लिए शस्य-श्यामला भारत की पावन भूमि, पहनने के लिए वल्कल वस्त्र, पीने के लिए गंगा की अमृतधारा तथा खाने के लिए एक पाव आटा पर्याप्त है। हमारे पास संसार की सबसे बड़ी संपत्ति आत्म धन है। इस धन की दृष्टि से तुम्हारा सिकंदर हमें क्या दे सकता है?’ शक्ति एवं संपत्ति के दर्प से चूर सिकंदर ने सैनिक के वार्तालाप को जब सुना तो विस्मित रह गया। अहंकार चकनाचूर हो गया। आध्यात्मिक संपदा के धनी इस देश के समक्ष वह नतमस्तक होकर चला गया।
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