यथार्थ और स्वप्न संदर्भ पत्रकारिता विषय पर सेमिनार का विवि में आयोजन 

 

मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव  मंथन सेमिनार श्रृंखला के अंतर्गतआजादी के 75 वर्ष और आगामी 25 वर्ष  यथार्थ और स्वप्न संदर्भ पत्रकारिता विषय पर मंथन सेमिनार आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की प्रतिकुलपति प्रो.  वाई विमला  ने की।
विशिष्ट वक्ता  राहुल देव, वरिष्ठ पत्रकार नई दिल्ली ने कहा कि भारतीय पत्रकारिता स्वाधीनता आंदोलन के समय एकता अखंडता आर्थिक सामाजिक औद्योगिक  आदि विकास के संबंध में  सकारात्मक भूमिका का निर्वाह करती है ।आजादी के बाद की राजनीति विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक संगठनों के प्रभाव के कारण स्वार्थऔर निजी हितों की राजनीति का शिकार हुई ।पत्रकारिता के स्वरूप को तीन रूपों में समझा जा सकता है आजादी के आंदोलन का दौर उसके बाद के दो दशक और तीसरे दशक तक राजनीति सत्ता शासन में बदल गई  उदारीकरण के बाद आर्थिक खुले पन के इस दौर में पत्रकारिता व्यवसाय बन गई पत्रकारिता एक फैशन है पत्रकारिता में ऑनलाइन चैनलों की बढ़ती भीड़ ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मीडिया के प्रभाव को कम किया है पत्रकारिता के अपने सपने होते हैं अपना आदर्श होते हैं मुल्य होते हैं इस पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि देश की चिंता देश की आंतरिक एवं बाह्य कड़ी निगरानी रखते हुए इमानदारी से पाठकों के सामने लाने का कर्तव्य पत्रकारिता में निहित है पत्रकारिता और सरकार पत्रकार का मैत्री भाव नहीं है पत्रकारिता अपना देवता आम नागरिक को मानती है आपातकाल का समय भारतीय पत्रकारिता के लिए सकारात्मक संकेत का समय नहीं था वहां पत्रकारिता और प्रेस की आजादी का गला घोट आ गया 1977 के बाद की पत्रकारिता आलोचनात्मक दृष्टि वाली पानी पत्रकारिता के साथ आगे बढ़ती है इस बीच बहुत सारे तकनीकी बदलाव हुए अखबारों का बहुत तेजी से विस्तार हुआ एक नया शिक्षित मध्यमवर्ग अखबार के पाठक के रूप में विकसित हुआ आपातकाल के बाद का समय कई विविधताओं के दौर का समय था जहां मीडिया के मीडिया के चरित्र स्वरूप में बहुत तेजी के साथ परिवर्तन हुए उदारवादी नीति के साथ पत्रकारिता आगे बढ़ती है वैश्विक पटल पर भारतीय पत्रकारिता की भूमिका एवं स्थिति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वैश्विक पटल पर भारतीय पत्रकारिता को आगामी 25 वर्षों में विशेष महत्व के साथ आकाश जा सकता है पश्चिम की कि गलत दृष्टि का शिकार भारतीय पत्रकारिता हुई है उस दृष्टि को सही रूप से मूल्यांकन कर भारतीय पत्रकारिता को वैश्विक पहचान दिलाने के  प्रयास करने चाहिए।
विशिष्ट वक्ता प्रफुल्ल केतकर संपादक आर्गनाइजर नई दिल्ली ने कहा किभारतीय स्वतंत्रता आंदोलन वैचारिक आंदोलन था जिसमें  स्वराज,स्वधर्म, स्वदेशी का विवेचन था। प्रारंभिक दौर की पत्रकारिता मिशनरी पत्रकारिता थी  आपातकाल के समय से पत्रकारिता में एक बड़ा परिवर्तन आया । 77 के बाद पत्रकारिता सरकार की निर्भरता पर केंद्रित हो ने लगी । सरकार के विरुद्ध और सरकार के पक्ष के रूप में पत्रकारिता दो घड़ो में  बट गई। 1995 के बाद ब्रेक न्यूज़ ने  उसके  स्वरूप में परिवर्तन किया ।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रभाव कम होने लगा न्यूज चैनलों पर प्रसारित होने वाली डिबेट  दर्शकों को कम  प्रभावित करने लगी।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में  सनसनी खबरों  का बोलबाला होने से इसके प्रभाव में कुछ कटौती हुई है। भारतीय पत्रकारिता की दृष्टि  विविधता  लिए हुए हैं इस दृष्टि को केंद्र में रखकर उन्होंने कहा कि आगामी 25 वर्षों में पत्रकारिता  व्यापक स्तर पर अपनी बड़ी भूमिका के साथ वैश्विकपटल पर  स्थापित होगी। जिसे पोस्ट कोविड.19 पत्रकारिता कहा जाएगा जहां छोटी सी पोस्ट पर बड़ी  कवरेज दिखाई जाएगी। पत्रकारिता की  दृष्टि  भारतीय दृष्टि के समानता साथ आगे बढ़े जहां घटित सभी घटनाओं और सरकारी नीतियों पर सवाल खड़ा करे  पत्रकारिता।पत्रकारिता को  सरकार पर निर्भर ना रहते हुए समाज निर्भर होने की आवश्यकता है।कार्यक्रम के संयोजक प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अयक्ष हिंदी विभाग ने कहा  विषय प्रवर्तन करते हुए सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया और पत्रकारिता की चुनौतियों और संभावनाओं पर गम्भीर विश्लेषण किया। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन प्रो.  रूप नारायण, कार्यक्रम सहसंयोजक एवं आचार्य वनस्पति विज्ञान विभाग ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रो. अशोक चौबे,  डॉ. मनोज श्रीवास्तवए  डॉ. सुधा रानी सिंह.  डॉ. अंजली मित्तल, डॉ अंजू, डॉ. विद्या सागर सिंह, डॉ. यज्ञेश कुमार. डॉ. साकेत सहायडॉ. कविता त्यागी,  डॉ. प्रवीण कटारिया, डा. जेएस भारद्वाज,  एवं विश्वविद्यालय अधिकारी, शिक्षक, एवं संबद्ध महाविद्यालय के प्राचार्य, शिक्षक, छात्र-छात्राओं ने प्रतिभागिता की।

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