- सोनम लववंशी
अब जरा सोचिए कि क्या हमारा देश ऐसे ही विश्वगुरू बनेगा? क्या जातियों में बांटकर हम खेलों में शीर्ष पर पहुँच पाएंगे? आख़िर यह जाति है कि जाती क्यों नहीं? वैसे तो हम नारा बुलंद करते हैं संप्रभु भारत का। फ़िर आख़िर बीच में जाति-धर्म और राज्य कहाँ से आ जाता है? चक दे इंडिया एक फ़िल्म आई थी। जिसमें एक खूबसूरत डायलॉग है कि, ” मुझे स्टेट के नाम न सुनाई देते हैं, न दिखाई देते हैं। सिर्फ़ एक मुल्क का नाम सुनाई देता है-इंडिया।” फ़िर सवाल यहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा नेता कैसे खिलाड़ियों को राज्यों में बांट सकते है? ऐसे नेताओं से सिर्फ़ यही सवाल है कि क्या इन खिलाड़ियों की विदेशों में पहचान उनके राज्य से होती है नहीं न। फ़िर ऐसी ओछी मानसकिता क्यों?
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