नगर निगम क्षेत्र के आंकड़े झूठा साबित कर रहे दावों को
सूरजकुंड श्मशान घाट व अन्य स्थानों में 40 दिन में 1500 से अधिक का अंतिम संस्कार
मेरठ। कोरोना की दूसरी लहर ने जहां सैकड़ों घरों में न भूलने वाला गम दे दिया। वहीं,प्रशासन की लचर कार्रवाई की पोल खोल दी। बजाय लोगों को स्वास्थ्य सुविधांमुहैया कराकर उनको ठीक करने कीसरकारी आंकड़ों में मौतों को ही छुपाकर सरकार के सामने अपनी वाहवाही लूटने कीकोशिश की। गत एक अप्रैल से लेकर 10मई तक के आंकड़ों में स्वास्थ्य विभागकोरोना से सिर्फ 200 मौतें होने का दावाकरता है। जबकि इस अवधि में नगर निगमके जन्म.मृत्यु विभाग की तरफ से 800 लोगों के डेथ सर्टिफिकेट जारी किये जा चुके हैं। इन आंकड़ों में ग्रामीण क्षेत्र के आंकड़ें तो शामिल भी नहीं है।
कोरोना की पहली लहर ने 60 साल सेऊपर वालों के लिये मुश्किलें खड़ी की थीऔर मेरठ में पहली लहर में हुई 400 केकरीब मौतों में 90 फीसदी मौत बुजुर्गों की हुईथी। कोरोना की दूसरी लहर ने 50 साल सेकम उम्र वालों पर ज्यादा प्रभाव डाला औरयही कारण है कि 40 साल से कम उम्र के
लोगों की मौतों ने लोगों को दहशत में डाल दिया। नगर निगम के जन्म.मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग के दिनेश कुमार ने बताया कि इससाल एक अप्रैल से लेकर 1५ मई तक 8४५लोगों ने डेथ सर्टिफिकेट के लिये आवेदन किया है। इसमें 775 लोगों को डेथ सर्टिफिकेट बनाकर दिया जा चुका है। पिछले साल इसीअवधि में सिर्फ 300 सर्टिफिकेट जारी किये गए थे। नगर निगम में 20 अप्रैल के बाद हुईमौतों के लिये लोगों ने अभी आवेदन नहीं किया है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि जिन घरों में पुरुषों की मौत हुई है औरउनके यहां बच्चे छोटे हैं या फिर जिनके मां.बाप कोरोना की भेंट चढ़ गए। उनके यहांआवेदन करने वाला कोई बचा नहीं है। ऐसेलोगों की तादाद भी काफी है। इसके अलावाअधिकांश घरों में तेरहवी के बाद लोगआवेदन करने के लिये निकलेंगे। इस कारणभी अधिकांश लोग आवेदन करने नहीं पहुंचे हैं। गंगा मोटर कमेटी के आंकड़ों के अनुसार10 अप्रैल से लेकर 10 मई तक सूरजकुंडश्मशान घाट में प्रतिदिन 50 से अधिक लोगोंका अंतिम संस्कार हुआ। एक सप्ताह तक यहआंकड़ा 60 से 80 तक पहुंच गया था। इस
हिसाब से देखा जाए तो कम से कम 1500लोगों का अंतिम संस्कार इस अवधि में हुआ।इनमें दूसरे जनपदों के कोरोना पीडि़तों के शवअगर निकाल भी दिये जाएं तो एक हजार से कम लोग अकेले मेरठ के हैं। इसके अलावा शहर के अन्य श्मशान घाटों और कब्रिस्तान के आंकड़े में इसमें शामिल नहीं किये गए हैं। शहर का बड़ा कब्रिस्तान बाले मियां में ही कोरोना काल में 200 से अधिक लोग सुपुर्दे खाक किये जा चुके हैं। इस बार के कोरोना में ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की ज्यादा मौतें हुई और प्रशासन अपने स्तर पर न तो लोगों के लिये ऑक्सीजन की व्यवस्थाकर पाया और न ही जीवनरक्षक दवाएंउपलब्ध करा पाया। अस्पतालों में बेड न मिलने के कारण भी लोगों ने दम तोड़ा। इस लचर और पंगु व्यवस्था के कारण कई लोगों
को अकाल मौत का सामना करना पड़ा।
एंबुलेंसों के सायरन सेदहशत बढ़ी
कोरोना काल में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान खाली पड़ी सड़कों पर तेज रफ्तार से गुजरने वाली एंबुलेंसों के सायरन कीआवाज सुनकर लोगों की दहशत बढऩे लगीथी। हर कोई इनको देखकर यही सोचता थाकि कोरोना से या तो किसी की मौत हुई है या फिर कोई गंभीर मरीज जा रहा है। अस्पतालों
में बेड न मिलने के कारण एंबुलेंस एक नर्सिंग होम से लेकर दूसरे नर्सिंग होमों मेंभागती रहती थी और निराश होकर मरीज इनमें ही दम तोड़ देता था। कोरोना पीडि़तोंके कारण इन एंबुलेंसों ने मानवीयता को ताक पर पैसे कमाने के लालच में मरीजों को ऐसे नर्सिंग होमों में भर्ती करा दिया जहां पर
न तो वेंटीलेटर की सुविधा थी और न ही ऑक्सीजन की। इस कारण भी कई मरीजों की जानें गई। प्रशासन इस तरह की अव्यवस्था को नजरअंदाज करता रहा। कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को ऐसे जख्म दिये है। जो उन्हें जिंदगी भर रूलाते रहेंगे।
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