डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के तहत कार्यशाला का आयोजन


मेरठ। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ कामलेन्द्र किशोर ने कहा कि बुजुर्गों को डिमेंशिया से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उनके प्रति अपनापन रखें। कभी अकेलापन महसूस न होने देंए समय निकालकर उनसे बातें करेंए उनकी बातों को नजरंदाज न करेंए बल्कि उनको ध्यान से सुनें। ऐसे कुछ उपाय करें कि उनका मन व्यस्त रहेए उनकी मनपसंद चीजों का ख्याल रखें। निर्धारित समय पर उनके सोने.जागनेए नाश्ता व भोजन की व्यवस्था का ध्यान रखें। अमूमन 65 साल की उम्र के बाद लोगों में यह भूलने की बीमारी ;अल्जाइमर्स.डिमेंशियाद्ध देखने को मिलती है। अक्सर नौकरी.पेशा से सेवानिवृत्ति के बाद यह समस्या पैदा होती है। इसके लिए जरूरी है कि जैसे ही इसके लक्षण नजर आएं तो जल्दी से जल्दी चिकित्सक से परामर्श करें। जीवन शैली में एकदम से बदलाव आनाए शरीर में आलसपन का आनाए लोगों से बात करने से कतरानाए बीमारियों को नजरंदाज करनाए भरपूर नींद का न आनाए किसी पर भी शक करना आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। 
डॉ कामलेन्द्र बृहस्पतिवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सीएचसी खरखौदा पर डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के अन्तर्गत आयोजित कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। कार्यशाला की अध्यक्षता वरिष्ठ चिकित्सक डॉ विनोद सिरोहा ने की। डॉ. सिरोहा ने इस बीमारी की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बेवजह के तनावए अनियमित दिनचर्या.अनियमित खान.पान की वजह से कम उम्र के लोग भी भूलने की बीमारी के शिकार हो रहे हैंए इसलिये अपनी जीवन शैली को दुरुस्त रखें और तनाव से दूर रहें।
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉण् विभा नागर ने कहा कि अक्सर परिवार के लोग बुजुगों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं। उनकी उचित देखभाल नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में वह अकेलापन महसूस करते हैं। तनाव के कारण धीरे.धीरे वह डिमेंशिया की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसलिए बुजुर्गों का विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता है। किसी भी तरह की लापरवाही उनके लिये घातक साबित हो सकती है। साकेट्रिस्ट सोशल वर्कर डॉ. विनीता शर्मा ने बताया मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जिला अस्पताल में ओपीडी चलती हैए उसमें सभी प्रकार की मानसिक समस्याओं व बीमारियों के लिये काउंसलिंग की जाती है। 


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