राजीव त्यागी
बीते दिनों मथुरा हाईवे पर हुए हादसे में हुई मौतें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हमने चांद व मंगल ग्रह तक दस्तक दे दी है, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्गों व एक्सप्रेस-वे पर यात्रियों के जानमाल की रक्षा के लिए धुंध से मुक्ति की तकनीक नहीं लगा पा रहे। यह बात पूरी तौर पर सही है कि प्रकृति का मुकाबला कर पाना संभव नहीं, लेकिन कमोबेश दुर्घटनाओं की संख्या कम करके जान-माल का नुकसान कम करने का प्रयास तो हम कर ही सकते हैं। यह सजगता नागरिकों के स्तर पर भी जरूरी है।
यात्रा के समय के चयन और धुंध के बीच वाहन चालन में अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत होती है। राष्ट्रीय राजमार्ग व एक्सप्रेस-वे पर पर्याप्त रोशनी और धुंध में दृश्यता बढ़ाने के तकनीकी प्रयास किए जाएं। मौसमी बाधा के बीच दुर्घटना का एक बड़ा कारण राजमार्गों के किनारे अवैध रूप से जगह-जगह खोले गए ढाबे भी बनते हैं। दरअसल, होटल-ढाबों के पास वाहनों को अपने परिसर में खड़ा करने की जगह नहीं होती, जिसके चलते ट्रक व अन्य वाहन सड़कों में खड़े रहते हैं।
जिसके चलते अक्सर तेजी से आने वाले वाहन दृश्यता की कमी से इन खड़े वाहनों से टकराकर दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं। पिछले माह राजस्थान के फलोदी के निकट एक टेम्पो ट्रेवलर के सड़क के किनारे खड़े ट्रेलर से टकराने से दस महिलाओं व चार बच्चों समेत पंद्रह लोगों की मौत हुई थी। इस घटना पर स्वत: संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने लिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण व प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सख्त नाराजगी दिखाई।
कोर्ट ने लगातार हादसों की वजह बन रहे इन अवैध होटलों-ढाबों पर नियंत्रण हेतु पूरे देश के लिये दिशा-निर्देश जारी करने की जरूरत बतायी। कई अध्ययनों में हादसों की वजह सड़कों के डिजाइन में कमी को भी बताया गया। सवाल है कि जब देश में अच्छी-तेज सड़कों का जाल तीव्र गति से बिछाया जा रहा है तो सुरक्षित सफर सुनिश्चित करना भी तो नीति-नियंताओं की जवाबदेही बनती है? हादसों के लिए सिर्फ चालकों को जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता। हां, इतना जरूर है कि वाहन चालकों को गति के साथ मति भी तेज रखनी होगी। यातायात नियमों का पालन करने में एक जिम्मेदार नागरिक का भी दायित्व निभाना होगा। ऐसा करके ही हम हादसों में होने वाली मौतों को कम कर सकते हैं।




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