इलमा अज़ीम
देश में हर दिन कोई न कोई साइबर ठगी का शिकार हो रहा है। तमाम कवायद के बाद भी इस रोक नहीं लग पा रही है। इस मामले में यह भी विचारणीय पहलू है कि कैसे पढ़े-लिखे लोग साइबर ठगों की साजिश की गिरफ्त में आ जाते हैं। वैसे आम आदमी को साइबर ठगों व फर्जी फोन कॉल्स से बचाने के लिये पुख्ता व्यवस्था होना बेहद जरूरी है।
आम लोगों की सुविधा व सुरक्षा के लिये सरकार के प्रयासों के बाद अब दूरसंचार विभाग ने मार्च 2026 में ऐसी व्यवस्था लागू करने के तैयारी की, जिसमें बिना ट्रू-कॉलर के खुद मोबाइल अवांछित फोन के प्रति सजग करेगा। नियामक संस्था ट्राई ने इस प्रस्ताव पर सहमति जतायी है। देश में इंटरनेट सेवाओं के विस्तार और मोबाइल फोन की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि के साथ ही साइबर अपराधों में खासी तेजी आई है।
जरा सी चूक होने पर लाखों लोग, साइबर धोखाधड़ी में अपने जीवनभर की पूंजी कुछ ही क्षणों में गवां देते हैं। अपराधियों का संजाल इतना विस्तृत व रहस्यमय है कि प्रवर्तन एजेंसियां जब तक उन तक पहुंचती हैं, पैसा विदेशों में ट्रांसफर हो जाता है। इस संकट का एक पहलू अनजान नंबरों से आने वाली फोन कॉल्स होती हैं, जिसके जरिये अपराधी लोगों को भ्रमित कर जीवन की जमा पूंजी लूट लेते हैं। दरअसल, संचार क्रांति के चलते तमाम सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हुई हैं, लेकिन इस सुविधा के साथ पुरानी पीढ़ी साम्य नहीं बैठा पाती है।
अब इसी चुनौती को दूर करने के लिये दूरसंचार विभाग आम उपभोक्ता को ऐसी सुविधा देने जा रहा है, जिसमें फोन करने वाले को पहचाना जा सकेगा। फोन पर कॉल करने वाले व्यक्ति का नाम लिखा नजर आएगा। फिर व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार फोन कॉल्स लेना तय कर सकता है। जानकारों का मानना है कि इस सुविधा से किसी सीमा तक मोबाइल के जरिये धोखाधड़ी करने वाले अपराधियों पर नकेल कसी जा सकेगी। मोबाइल उपयोगकर्ता की सजगता इसमें मददगार हो सकेगी।
स्क्रीन पर अनजान नंबर व नाम देखने के बाद मोबाइलधारक फोन कॉल्स को उठाने से बच सकता है। वैसे इसके साथ ही देश में डिजिटल साक्षरता की दिशा में व्यापक पहल करने की जरूरत है। विभिन्न सूचना माध्यमों के जरिये लोगों को सजग-सतर्क किए जाने की आवश्यकता है। ऐसे फर्जी कॉल्स की प्रमाणिकता की पुष्टि करने के लिये हेल्पलाइन सुविधाओं में विस्तार करने की भी जरूरत है।




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