वेदों से निकली है मुक्तक की परंपरा और आज भी मुक्तक लिखे जा रहे हैं : प्रोफेसर चंद्रदेव यादव
रीतिकाल में मुक्तक काव्य परंपरा चरम पर रही : डॉ. यज्ञेश कुमार
मुक्तक एक ऐसी विधा है जिसमें कोई भी अपनी बात चार लाइनों में कह सकता है: डॉ. नीलम मिश्रा तरंग
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के उर्दू डिपार्टमेंट में "साहित्य में मुक्तक की परंपरा" विषय पर ऑनलाइन प्रोग्राम आयोजित
मेरठ । मुक्तक एक स्वतंत्र विधा है।वेदों से निकली है मुक्तक की परंपरा और आज भी मुक्तक लिखे जा रहे हैं। चाहे वे दो-लाइन, चार-लाइन या छह-लाइन की रचनाएँ हों, उन्हें मुक्तक कहा जाता है। एक शब्द, दो शब्द, तीन शब्द, आदि में भी तुकबंदी होती है। सभी मुक्तकों में तुकबंदी नहीं होती। ये शब्द प्रोफेसर चंद्रदेव यादव के थे, जो आयुसा और उर्दू विभाग द्वारा आयोजित "साहित्य में मुक्तक की परंपरा" विषय पर अपना वक्तव्य दे रहे थे।
इससे पहले, प्रोग्राम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने तिलावत से की। । अध्यक्षता प्रोफेसर चंद्रदेव यादव हिंदी डिपार्टमेंट, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली ने की। मशहूर हिंदी कवयित्री डॉ. नीलम मिश्रा ‘तरंग’ ने मुख्य अतिथि गेस्ट के और विजया गुप्ता एवं वीरेश कुमार त्यागी ने मुक्तककार के रूप में हिस्सा लिया। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ के हिंदी डिपार्टमेंट के डॉ. यज्ञेश कुमार शोध वक्ता के रूप में उपस्थित रहे । लखनऊ से AUSA की प्रेसिडेंट प्रोफेसर रेशमा परवीन स्पीकर के तौर पर मौजूद थीं। स्वागत डॉ. इरशाद स्यानवी ने तथा संचालन डॉ. अलका वशिष्ठ ने किया। इस मौके पर मशहूर लेखक और आलोचक प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि आज का प्रोग्राम साहित्य में मुक्तक की परंपरा में बहुत अहम है। उर्दू में छंद की कोई खास परंपरा या महत्व नहीं है, लेकिन इसके ज़िक्र और महत्व को नकारा नहीं जा सकता। हमारे मेहमान आज इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जिससे विद्वानों को ज़रूर फ़ायदा होगा।
डॉ. यज्ञेश कुमार ने कहा कि वैदिक काल या बौद्ध धर्म में भी मुक्तकों के उदाहरण मिलते हैं। । संस्कृत में इस विधा का खास योगदान रहा है। मुक्तक की परंपरा पहली सदी से सोलहवीं सदी तक मिलती है। रीतिकाल में मुक्तक काव्य परंपरा चरम पर रही। मुक्तक गाए भी जा सकते हैं। जैसे मेरा या रहीम और कबीर वगैरह के दोहे गाए जाते हैं और उन सभी ने इस विधा को बढ़ावा दिया।
डॉ. नीलम मिश्रा तरंग ने कहा कि मुक्तक एक ऐसी विधा है जिसमें चार लाइनों में अपनी बात पूरी की जा सकती है। जब हम किसी से प्यार करते हैं, तो वे भी हमसे बेइंतहा प्यार करते हैं। इसलिए मैंने प्यार के शिखर पर कई मुक्तक लिखे हैं। प्रोफेसर रेशमा परवीन ने कहा कि मुक्तक को लेकर आज का प्रोग्राम बहुत ज़रूरी था। हमारे स्टूडेंट्स को आज यह जानने का मौका मिला कि मुक्तक हिंदी की एक ज़रूरी विधा है। कविताएँ पेश करने वालों ने जाना कि हिंदी या उर्दू में गाए जाने वाले मुक्तकों का क्या स्टेटस है। फैज़, मीर और दूसरे शायरों ने भी बहुत सुंदर मुक्तक लिखे हैं।
प्रोफेसर सगीर अफराहीम ने कहा कि हम उर्दू वाले मानते हैं कि कोई भी विधा हिंदी के बिना पूरी नहीं होती और कोई भी हिंदी विधा उर्दू के बिना पूरी नहीं होती। अंबर बहराइची, के. निज़ाम वगैरह ने इस विधा पर काम किया है और यह विधा संस्कृत से आई है।इस मौके पर विजया गुप्ता और वीरेश कुमार त्यागी ने ने अलग-अलग विषयों से जुड़े मुक्तक पेश किए।डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, फरहत अख्तर, मुहम्मद ईसा राणा, मुहम्मद शमशाद और दूसरे स्टूडेंट्स प्रोग्राम से जुड़े थे।


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