नारी शक्ति का उदयकाल

 इलमा अज़ीम 
भारत की आधी आबादी, जिसे लंबे समय तक घर की चौखट और सामाजिक परंपराओं में सीमित माना जाता था, आज नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही है। बीते दशक में तस्वीर पूरी तरह बदली है। ऐसे कानून बने जिन्होंने महिलाओं को बराबरी और गरिमा का अधिकार दिया, और ऐसी योजनाएँ आईं जिन्होंने मातृत्व को सुरक्षित कर बेटियों के सपनों को पंख दिए। 

यही वजह है कि आज नारी शक्ति केवल वोट नहीं, अब राष्ट्र की आवाज़ है। सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए ‘मिशन शक्ति’ की शुरुआत की। हिंसा झेलने वाली महिलाएँ अब कानूनी, चिकित्सीय और मानसिक सहयोग एक ही स्थान पर पा रही हैं, और यह भरोसा जगा है कि उनकी आवाज़ अब अनसुनी नहीं होगी। मुस्लिम महिलाओं को अन्यायपूर्ण परंपरा से मुक्त करने वाला ‘तीन तलाक’ विरोधी कानून इसी दिशा में एक बड़ा परिवर्तन साबित हुआ।
 
वहीं कामकाजी महिलाओं के लिए ‘मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017’ के अंतर्गत अवकाश 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया गया तथा बड़े संस्थानों में शिशु गृह (क्रेच) की सुविधा अनिवार्य की गई। इन पहलों ने महिलाओं को सुरक्षा और गरिमा के साथ कार्यक्षेत्र में सक्रिय योगदान का अवसर प्रदान किया। सरकार की नीतियों में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारी सशक्तिकरण का मर्मस्थ स्रोत रहा है, और हाल के आँकड़े इसकी गवाही देते हैं। 



2014-15 में जहाँ 1000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ थीं, 2023-24 में यह अनुपात बढ़कर 930 हुआ और माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों की नामांकन दर 75.51 प्रतिशत से बढ़कर 78 प्रतिशत पहुँची। वहीं स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने करोड़ों शौचालयों ने ग्रामीण महिलाओं को खुले में शौच की विवशता से उबारकर उनकी गरिमा और स्वास्थ्य दोनों को संबल दिया। यह सब मिलकर नारी जीवन में सुरक्षा, सम्मान और स्वाभिमान की नई कहानी लिख रहे हैं।



 आर्थिक स्वतंत्रता भी अब महिलाओं की शक्ति का दूसरा नाम बन चुकी है। डिजिटल इंडिया ने महिलाओं के जीवन में ऐतिहासिक बदलाव लाया है। शहरी भारत की महिलाएँ स्मार्टफोन और इंटरनेट के सहारे बैंकिंग, ई-कॉमर्स और डिजिटल भुगतान को सहज बना रही हैं, तो ग्रामीण भारत की 76 प्रतिशत महिलाएँ मोबाइल का उपयोग कर रही हैं और आधी से अधिक अपने निजी फोन की स्वामिनी बन चुकी हैं। यही तकनीकी पहुँच उन्हें डिजिटल विपणन, पैकेजिंग और ई-कॉमर्स से जोड़कर आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर कर रही है। बेशक चुनौतियाँ अब भी हैं और सामाजिक पूर्वाग्रह भी कायम हैं, पर अब नींव इतनी मजबूत है कि बदलाव अटल है। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts