बिहार चुनाव परिणाम के संदेश
- प्रो. नंदलाल
बिहार में जो हुआ वह इतिहास में दर्ज हो गया। मतदान प्रतिशत में भारी उछाल के बावजूद सत्तापक्ष को पुनः भारी बहुमत प्राप्त हुआ। जो आशा के विपरीत था।एग्जिट पोल सही साबित हुए और सरकार की पुनः वापसी होगी। लेकिन इस चुनाव ने बहुत कुछ संदेश दिया।प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में क्या हुआ इसका कोई अर्थ नहीं बचा। पिछले एक वर्ष से बिहार में नेताओं की चहल कदमी बढ़ गई थी कोई एमवाई समीकरण को साधने में लगा था तो कोई मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में लगा था। कोई शोर मचा रहा था जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी।कोई क्राईम के सहारे चुनाव जीतना चाहता था तो कोई अपराधियों को टिकट देकर उसे विधान सभा भेजना चाहता था।चुनाव ने ठीक इसके उलट परिणाम दिया और मजहबी राजनीति धराशाई हो गई।जातिवादी राजनीति औंधे मुंह गिर गई।
चुनाव परिणाम ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि अब गुंडों और मवालियों के लिए चुनाव जीतना कठिन कार्य है।हालांकि अभी सौ प्रतिशत यह बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती है क्योंकि इस चुनाव में कुछ सजायाफ्ता लोग चुनाव में बाजी मार लिए हैं पर इसका लंबा दौर अब नहीं होगा। मतदाताओं ने अपनी जाति को तरजीह दी है पर उन्होंने ऐसे उम्मीदवारों को वोट नहीं किया है जो अपने क्षेत्र में आम आदमियों के लिए खतरा बने हुए हैं और दिन रात गुंडई प्रदर्शित करते रहे हैं।जनता ने उन्हें नकार दिया है और अपनी जाति से अच्छे उम्मीदवारों को ही जिताए हैं।एक आंकड़ा आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।पिछले चुनाव में, 58 यादव विधायक चुनकर विधान सभा में आए थे अबकी बार यह आंकड़ा 28का हो गया है। पिछली विधान सभा में 19 मुस्लिम विधायक थे जो अबकी बार 11 हो गया है। राजपूत समुदाय से अबकी बार 32 विधायक चुनकर आए हैं पिछली बार इनकी संख्या केवल 27थी। कुर्मी और कुशवाहा समुदाय बिहार में मात्र 5प्रतिशत हैं पर इस समुदाय के 45विधायक सदन पहुंचे हैं।ब्राह्मण समुदाय की आबादी बिहार में 4प्रतिशत है और वहां 14 विधायक अबकी बार चुनकर आए हैं।इसी तरह दलित समुदाय की आबादी से अच्छी संख्या में विधायक चुनकर आए हैं इनमें मुसहर और पासवान का दबदबा रहा है।
आंकड़ा तो यही बताता है कि सबके बावजूद जाति की राजनीति बिहार में हावी रही है।बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति जातिगत हथकंडे के दायरे में फंस चुकी है और इससे निकल पाना दुरूह है।शिक्षा के बढ़ते प्रभाव ने सभी को जागरूक किया है और हर जाति में शिक्षितों की संख्या भी बढ़ रही है।इसलिए यह कह पाना कि चुने हुए प्रतिनिधि अयोग्य हैं ऐसा भी नहीं है पर योग्य लोग कम ही हैं।अब योग्य लोगों की रुचि राजनीति में कम हो गई है।राजनीति को बहुत अच्छे नजरिए से नहीं देखा जा रहा है।क्योंकि नेता बनने की कुछ आवश्यक पूर्व वर्ती दशाएं जरूरी हो चली हैं।जैसे क्षेत्र में आप दो तरीके से अपना नाम समाज में कमा सकते हैं सेवा करके और गुंडई करके।सेवा एक कठिन कार्य है पर गुंडई तो आप अपनी मूर्खता से भी कर सकते हैं।गुंडई से समाज को आप भयभीत करते हैं और सेवा में श्रम करना होता है।सेवा से आप लोगों के दिल में जगह बना सकते हैं पर यह एक सुधीर्ग प्रक्रिया है और गुंडई से आप चंद समय में अपना नाम समाज में फैला सकते हैं।
लालू सरकार की परछाइयां राजद का पीछा नहीं छोड़ रही हैं।तेजस्वी का मानना है कि अब वह वक्त नहीं है न अब वे लोग हैं।राजद नए रूप में सामने आ चुका है पर जनता को भ्रष्ट नेताओं से तौबा हो रहा है।वे अपनी जाति का नेता ही चुन रहे है पर उनकी नजर में भ्रष्टाचार बुरी बात हो चुकी है। एम वाई समीकरण से चुनाव नहीं जीता जा सकता। जब आप अपने दायरे को मात्र दो वर्गों तक सीमित कर लेंगे और जीतने का भरोसा करेंगे तो यह कैसे संभव है।आज का मतदाता विशेषकर अत्यंत पिछड़ा और दलित समाज तत्काल लाभ देखता है क्योंकि उनके सामने भुखमरी है।जो दल तात्कालिक लाभ मुहैया करा दें लाभ उसी दल को होगा।
रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस के पास भी तात्कालिक लाभ मुहैया कराने के लिए धन की कमी है।ऊपर से बिहार का चारा घोटाला जिसमें कांग्रेस का नाम भी आता है और मनमोहन जी के समय सुरेश कलमाड़ी और डी राजा का खेल किसको नहीं पता है।रही सही कसर बिहार में कैडर का अभाव,और नेताओं की क्षुद्र राजनीति ने राहुल गांधी के प्रयासों की धार को कुंद कर दिया।नीतीश की मर्यादित भाषा और सशक्त केंद्र की सत्ता के सामने बहुत स्ट्रेटजी की जरूरत है।बरसाती मेंढ़कों की तरह सिर्फ बरसात में टर्र टर्र करने से पूरे वर्ष बारिश नहीं होगी।अनवरत प्रयास से ही जनसेवा होगी अन्यथा चुनाव आते रहेंगे जाते रहेंगे समीक्षाएं होती रहेंगी।
(महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट,सतना)






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