गुरूतेग बहहादुर के 350वें शहीदी दिवस के अवसर पर थिएट्रिकल लाइट एंड साउंड लाइव शो का आयोजन 

मेरठ।  गुरू तेग बहादुर पब्लिक स्कूल में गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित 27 नवंबर को थिएट्रिकल लाइट एण्ड साउड लाइव शो एवं 28 नवंबर को कीर्तन दरबार का आयोजन किया जाएगा। जिसामें एतिहासिक तथ्यों को नाटय के रूप में दिखाया जाएगा। 

 जीटीबी स्कूल में मीडिया को जानकारी देते हुए हुए स्कूल के चेयरमैन सरदार इंन्द्रजीत सिंह सालवान  ने जानकारी देते हुए बतायाबताया कि  गुरु साहिब  एवं उनके शिष्यों के बलिदान के वृत्तांत को 27 नवंबर सांय 7:00 बजे से 5:00 बजे तक पंजाबी रंगमंच, पटियाला द्वारा थिएट्रिकल लाइट एण्ड साउड लाइव शो के माध्यम से दिखाया जाएगा। 28 नवंबर प्रातः 11:00 बजे से 1:00 बजे तक भाई सतनाम सिंह कोहरका जी (हजूरी रागी श्री दरबार साहिब, अमृतसर) गुरुवाणी के कीर्तन द्वारा सतसंग को निहाल करेंगे। 

बताया कि  1675 ई० में जब कश्मीरी पंडितों पर बादशाह औरगंजेब अत्याचार कर जबरन धर्म परिवर्तन करा रहा था। तब कश्मीरी पंडित कृपा राम की अगुवाई में कश्मीरी पंडितों का एक जत्था गुरू तेग बहादुर जी के पास आया और कहा कि बादशाह औरंगजेब हमसे जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश कर रहा है और हम पर बहुत अत्याचार किया जा रहा है। गुरु ने उनकी पीडा को समझा और कहा कि धर्म और मानवता की रक्षा के लिए किसी महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। तभी पास बैठे श्री गुरू साहिब के पुत्र श्री गोविंद रॉय जिनकी उम्र मात्र 9 वर्ष थी ने कहा-पिताजी आपसे बड़ा महापुरुष इस बलिदान के लिए और कौन हो सकता है? जो इतनी बड़ी कुर्बानी दे सके। पुत्र के शब्दों को सुनकर गुरु जी ने स्वयं का बलिदान देने का फैसला किया। औरंगजेब के पास संदेश भिजवाया कि यदि बादशाह हमारे गुरू का धर्म परिवर्तन कराने में सफल हो जाए जो हम सभी खुशी-खुशी इस्लाम कुबूल कर लेंगे।

गुरु  के इस संदेश को सुनकर औरंगजेब ने उन्हें गिरफ्तार करने का फैसला किया। गुरु को उनके शिष्य भाई मतीदास, भाई सतीदास और भाई दयाला जी के साथ बंदी बनाकर दिल्ली के चांदनी चौक लाया गया। धर्म परिवर्तन के लिए जब उसकी सारी कोशिश नाकाम हो गई जो बादशाह ने गुस्से में दिल्ली के चांदनी चौक पर उनके प्रिय शिष्य भाई मतीदास को आरे से चिरवाया, भाई सतीदास को रुई में लपेटकर आग के हवाले कर दिया एवं भाई दयाला जी को उबलते पानी के देग में डाल कर शहीद कर दिया। फिर भी गुरू जी अपने शिष्यों की शहादत को देखकर बादशाह के आगे नहीं झुके और ना ही इस्लाम कुबूल करने को राजी हुए तो औरगजेब ने उनके शीश को धड़ से अलग करने का आदेश दिया। चारों ओर  कोहराम मच गया। इसी बीच उनके एक शिष्य भाई जैता जी ने उनका शीश श्रद्धा से उठाया और आनंदपुर के लिए रवाना हो गया। दूसरा शिष्य लक्खी शॉह बंजारा ने उनका धड़ अपनी झोपड़ी में रख आग लगाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया, जहा आज दिल्ली, संसद भवन के पास रकाबगंज गुरुद्वारा स्थित है तथा आंनदपुर साहिब में जहां उनके शीश का अंतिम संस्कार, किया गया वहां आज गुरुद्वारा केशगढ़ साहिब स्थित है एवं शहादत के स्थान चांदनी चौक पर गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है।इस मौके पर स्कूल के प्रधानाचार्य डा कमेन्द्र सिंह आदि मौजूद रहे। 


No comments:

Post a Comment

Popular Posts