- संजीव ठाकुर
महात्मा गांधी ने कहा था कि “विज्ञान मानवता के लिए हो, तभी उसका मूल्य है।” मानवीय सभ्यता ने तकनीक के क्षेत्र में असीमित प्रगति की है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता अथवा आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) वैज्ञानिक प्रगति का जीता जागता सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसने मानविय जिंदगी की लगभग हर शाखा में बहुत गहरे से प्रवेश कर लिया है। शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, कृषि, सुरक्षा, संचार और न्याय कोई भी क्षेत्र इससे अछूता अप्रभावित नहीं रहा। एआई की तीव्रता ने हमारे समय और श्रम की असीमित बचत की है, देश की उत्पादन क्षमता, कृषि क्षमता और वैज्ञानिक क्षमता को कई गुना बढ़ाया है और निर्णय लेने की क्षमता को अद्भुत उच्च स्तर तक पहुँचा दिया है। किंतु एक बड़ी समस्या हमारे सामने है कि क्या यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी संवेदना,ममता प्यार,दुलार को अंगीकृत कर पाएगी, जो मनुष्य मूल के स्वभाव में समाहित है?
एआई के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालें तो यह सात दशक पुराना है, पर उसकी यात्रा बड़ी ही रोमांचक है। 1950 में एलन ट्यूरिंग ने प्रश्न उठाया था “क्या मशीनें सोच सकती हैं?” और इसके साथ ही “ट्यूरिंग टेस्ट” सामने आया, जो मशीन की बुद्धिमत्ता मापने की पहली कसौटी बनी थी। 1956 में डार्टमाउथ सम्मेलन के दौरान “आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस” शब्द का औपचारिक जन्म हुआ था। शुरुआत के कुछ दशकों में एआई केवल खेलों और गणनाओं तक जुड़ी तथा सीमित दायरे में रही, पर 1980 और 1990 के दशक में कंप्यूटरों की बढ़ती क्षमता और न्यूरल नेटवर्क जैसी अवधारणाओं ने इसको काफी हद तक आगे बढ़ाया है। 21वीं सदी के आगमन पर इंटरनेट और बिग डेटा ने इसे वास्तविक जीवन और दिन प्रतिदिन का महत्वपूर्ण एवं अत्यंत आवश्यक हिस्सा बना दिया। आज एआई भाषा की समझ अच्छे से रखने लगा है, अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तस्वीरें भी बहुत अच्छे से पहचाननें लगा है, मनुष्य देश तथा घटनाओं के बारे में भविष्यवाणियाँ कर सकता है और मनुष्य जैसी बातचीत कर सकता है। इसके बावजूद एआई और मनुष्य के बीच का अंतर बड़ा,विराट,विस्तारित और विहंगम है ।
मशीन गणना कर सकती है, पर अनुभव नहीं कर सकती। वह उस ममता को कहाँ से लाएगी, जो किसी माँ की गोद में शिशु को थामते ही सहज उत्पन्न हो पड़ती है? वह करुणा कैसे दिल में महसूस करेगी, जो किसी अजनबी की पीड़ा देखकर स्वतः उमड़ पड़ती है? एआई सहानुभूति का अभिनय कर सकता है, मुस्कुरा सकता है, सांत्वना के शब्द बोल सकता है, परंतु उस मुस्कान में आत्मा की खुशी या पीड़ा नहीं दे सकता है।
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने गीतांजलि में लिखा था—“जहाँ मन भय से मुक्त हो और मस्तक ऊँचा हो”—यह स्वप्न केवल नोबेल पुरस्कार विजेता मनुष्य का है, मशीन का नहीं।आज एआई चिकित्सा में कैंसर और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों के निदान में डॉक्टरों की सहायता कर रहा है, शिक्षा में विद्यार्थियों को व्यक्तिगत अध्ययन सामग्री प्रदान कर रहा है, कृषि परियोजनाओं में मौसम का पूर्वानुमान कर किसानों को समय पर मौसम और वर्षा के बारे में जानकारी दे रहा है और उद्योगों में उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ाने का का प्रयास कर उत्पादन बढ़ा चुका है। और अब रूस यूक्रेन, इसराइल हमास,य भारत पाकिस्तान युद्ध और सुरक्षा में भी इसका उपयोग ड्रोन और स्वचालित हथियारों में बड़े ही व्यापक तथा बृहद रूप से हो रहा है। किंतु क्या मनुष्य के जीवन में अवसान या मृत्यु जैसे निर्णय किसी एल्गोरिद्म को प्रदान किये जा सकते हैं? युद्धभूमि पर यह तय करना कि किसका जीवन बचे और किसे बलिदानी होना पड़ेगा, केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संभव नहीं। वहाँ पर केवल करुणा, विवेक और मानवीय संवेदना ही अंतिम निर्णय ले सकतीहै।
आज दुनिया भर में “इमोशनल एआई” पर शोध हो रहा है। ऐसे रोबोट बनाए जा रहे हैं जो चेहरे के भाव और आवाज़ की थरथराहट को पहचानकर प्रतिक्रिया दे सकते हैं। किंतु यह वास्तविक अनुभूति नहीं, केवल अभिनय है।
महात्मा गांधी ने कहा था—“विज्ञान मानवता के लिए हो, तभी उसका मूल्य है।” यदि विज्ञान मानवता से कट जाए तो उसका स्वरूप शुष्क और नीरस हो जाता है। यही कारण है कि आचार्य विनोबा भावे ने चेताया था—“ज्ञान की ऊँचाई यदि प्रेम की गहराई से जुड़ी न हो, तो वह अधूरा है।”
भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि एआई को मानव का सहयोगी उपकरण या साधन बनाया जाए, उसका विकल्प आधार नहीं। तकनीक हमें भौतिक रूप से सक्षम बना सकती है, पर आत्मिक शक्ति केवल भावनाओं और संवेदनाओं में है। असली प्रश्न यह नहीं है कि मशीनें भावनाएं कब सीखेंगी, बल्कि यह है कि हम इंसान अपनी संवेदनाओं को कितनी मजबूती से थामे रख पाते हैं। यदि हम अपनी करुणा और ममता खो देंगे, तो यह संसार एक यांत्रिक और नीरस समाज बनकर रह जाएगा, जहाँ केवल तर्क और यंत्रणा शेष होगी।मानव और मशीन का अंतर यही है—मशीन सोच सकती है, पर महसूस नहीं कर सकती। मनुष्य की असली पहचान उसकी संवेदनशीलता है, उसकी ममता है, उसकी करुणा है और यही धरोहर उसे सदा श्रेष्ठ बनाए रखे।
(चिंतक-स्तंभकार, रायपुर छत्तीसगढ़)
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