शांति की राह
इलमा अज़ीम
इजराइल और हमास के बीच दो वर्षों से चल रहे युद्ध पर फिलहाल विराम लग गया है। दोनों पक्ष शांति की राह पर लौट आए हैं। अमेरिका की ओर से तैयार की गई समझौता योजना के प्रथम चरण में हमास ने बीस बंधकों को रिहा कर दिया है और बदले में इजराइल ने उन्नीस सौ से ज्यादा फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया है। इसके साथ ही अब तक बारूदी आग की तपिश झेल रहे गाजा के नागरिकों ने भी राहत की सांस ली है। भारत और ब्रिटेन सहित कई देशों ने अमेरिका की इस पहल का स्वागत किया है।
वैश्विक नेताओं को उम्मीद है कि शांति समझौता अपने अंजाम तक पहुंच जाएगा, लेकिन इस प्रक्रिया में अभी कई अड़चनें साफ नजर आ रही हैं। हमास के निरस्त्रीकरण, गाजा के शासन और फिलिस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देने जैसे जटिल मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं। ऐसे में इस पूरी कवायद को फिलहाल सिर्फ युद्ध रोकने के अस्थायी उपाय के तौर पर भी देखा जा रहा है। दरअसल थोड़े से विवाद पर एक देश दूसरे देश पर गोला बारूद बरसाने लग जाता है।
एक मोर्चे पर लड़ाई रुकती नहीं कि उतने में दूसरा मोर्चा उभर कर युद्ध के मुहाने पर आकर खड़ा हो जाता है। रूस-यूक्रेन का युद्ध सालों से चला आ रहा है जिसमें केवल मानवता का नुकसान हो रहा है, तो दूसरी तरफ इजरायल-फिलिस्तीन, इजरायल-ईरान की लड़ाई भी विश्व को डरा रही है। रूस के द्वारा यूक्रेन के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध अभी तक जारी है और फिलहाल इसका कोई परिणाम नहीं दिख रहा। सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं जिससे एक बात निश्चित है कि इसका प्रभाव पूरे विश्व में पड़ रहा है। युद्ध चाहे कोई भी हो, कौनसा भी हो, लेकिन वह कभी भी किसी भी देश की लोकतांत्रिक राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं होता। एक युद्ध जिन देशों के बीच में छिड़ता है, केवल उनकी ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की शांति भंग करता है।
इसका उदाहरण हमें यूक्रेन बनाम रूस तथा इजरायल-फिलिस्तीन व इरान के युद्ध से मिल रहा है। लाखों लोग रूस-यूक्रेन युद्ध में अपनी जान गंवा चुके हैं। आखिर उनका दोष क्या था? आम जनता कभी भी युद्ध नहीं चाहती बल्कि यह तो उसे झेलना पड़ता है। वो तो अपने शासक के निजी कारणों की वजह से इसमें पिस जाती है। केवल एक व्यक्ति की वजह से जो कि स्वयं युद्ध लड़ता भी नहीं है, उसकी वजह से लाखों बेकसूर लोगों की जान चली जाती है। न जाने कितने लोगों से उनका परिवार छिन जाता है।



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