साहित्यकारों ने कृष्णा सोबती और डॉ. रघुवंश को किया याद
आवरण की सभ्यता के पीछे का सच लेखक ही कहता हैः प्रो. विनोद तिवारी
प्रयागराज। राजभाषा अनुभाग इविवि द्वारा आयोजित जन्मशती स्मरण संगोष्ठी के तीसरे दिन कृष्णा सोबती और डॉ. रघुवंश को याद किया गया। पहले सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के आचार्य एवं पक्षधर के संपादक आलोचक प्रो. विनोद तिवारी ने कहा कि कृष्णा सोबती केवल हिन्दी की लेखक नहीं बल्कि बड़े अर्थों में भारतीय लेखक हैं। सोबती की रचना मित्रों मरजानी की भाषा पर अश्लीलता के कई आरोप लगे लेकिन आवरण की सभ्यता के पीछे का सच लेखक नहीं कहेगा तो कौन कहेगा। उन्होंने कहा लेखक और सत्ता का रिश्ता पारस्परिकता का नहीं खबरदारी का होता है। साहित्य का जातीय स्वर प्रतिरोध का होता है।
इग्नू से आईं डॉ. ज्योति चावला ने ‘ कृष्णा सोबती एवं विभाजन का साहित्य ’ पर बात रखी। उन्होंने कहा कि विभाजन के साहित्य में कृष्णा सोबती के यहां कोई भी बड़ी स्त्री पात्र दिखाई नहीं देती जो उसकी त्रासदी मुखरता से कहे स्टैंड ले जैसा कि पिंजर में या तमस में दिखाई देता है।
वर्तमान साहित्य के वर्तमान संपादक आलोचक संजय श्रीवास्तव ने जिंदगीनामा में हम हशमत में कृष्णा सोबती की लिखी कविता की चर्चा की और सशक्त लेखिका करार दिया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. चंदा देवी ने कहा कि कृष्णा सोबती की कहानियों की भाषा पर बातचीत की। सत्र का आभार ज्ञापन डॉ. गायत्री सिंह ने किया।
दूसरा सत्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पू्र्व विभागाध्यक्ष प्रमुख साहित्यकार और समाजवादी चिंतक डॉ. रघुवंश की जन्मशती को समर्पित रहा। इस सत्र के प्रमुख वक्ता वरिष्ठ आलोचक प्रो. प्रणय कृष्ण ने कहा कि रघुवंश जी की रचनाओं का कीवर्ड है मानवीय मूल्य और दायित्वबोध। वे व्यक्ति स्वातंत्र्य को व्यक्तिवाद नहीं मानते थे। स्वातंत्र्य से निकला दायित्वबोध सबसे ज्यादा उनको गांधी के व्यक्तित्व में दिखता है। वे नयी कविता के आलोचक थे। डॉ.रघुवंश के शिष्य रहे जन संस्कृतिकर्मी लेखक रामजी राय ने अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि रघुवंश जी का ऐसा मानना था कि शोध निर्देशक विचारों का निर्देशक नहीं होता उसे केवल शोध की असंगतियों पर ध्यान देना होता है।
प्रमुख आलोचक एवं बनारस के आचार्य प्रो.कमलेश वर्मा ने बताया कि डॉ. रघुवंश कबीर को कवि के रूप में देखते हैं। साथ ही प्रो. वर्मा ने डॉ. रघुवंश की आलोचना दृष्टि की विषद समीक्षा की।
इस अवसर पर संयोजक प्रो कुमार वीरेंद्र, सह संयोजक प्रो आशुतोष पार्थेश्वर , आयोजन सचिव प्रवीण श्रीवास्तव, डॉ अमृता, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, प्रो. राकेश सिंह, प्रो. राजेश गर्ग , प्रो. भूरेलाल, डॉ. कल्पना वर्मा, डॉ. गाजुला राजू, डॉ शिवकुमार यादव, डॉ. चितरंजन कुमार, डॉ संतोष कुमार सिंह , डॉ. मुदिता तिवारी, डॉ. शशि , विभु गुप्त , गीता गुप्त , श्रीरंजन शुक्ला , हरिओम , डॉ अवनीश यादव, किरन यादव , मनीता यादव, केतन यादव, पारस सैनी , रीशू यादव , शशिभूषण, आर्यन , ज्ञानेंद्र द्विवेदी, प्रदीप पार्थिव, आनंद यादव आदि शोधार्थी विद्यार्थी एवं शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।


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