शिक्षक वही जो एक से दूसरे दीपक को जलाएः  प्रो. पृथ्वी नाग

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उ.प्र. का सम्मान समारोह

वाराणसी।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उ. प्र. की महानगर इकाई काशी की ओर से डॉ. घनश्याम सिंह पीजी कॉलेज लमही वाराणसी में आयोजित समारोह में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षण संस्थान से सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान किया गया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पी. नाग ने शिक्षकों की महत्ता को बताया। उन्होंने कहा कि आदर्श शिक्षक वही है जो एक दीपक से दूसरे दीपक को जलाए। उन्होंने चाणक्य का उदाहरण देते हुए कहा कि एक शिक्षक कई राजा तैयार कर सकता है।
अतिथियों के स्वागत और दीप प्रज्वलन व सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। महाविद्यालय की शिक्षिकाओं द्वारा सरस्वती वंदना, कुल गीत एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम सचिव अमिताभ मिश्र ने पौराणिक मंगलाचरण किया । डॉ. घनश्याम सिंह महाविद्यालय के प्रबंधक नागेश्वर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सहायक आचार्य दुर्गेश उपाध्याय ने बहुत ही मार्मिक भाषा में लोकगीत प्रस्तुत किया। इसके बाद सभी 31सेवानिवृत्त शिक्षकों को स्मृति चिन्ह, पुस्तक व अंगवस्त्रम् प्रदान करते हुए  सम्मानित किया गया। सम्मानित होने वाले शिक्षकों में डॉ. महेंद्र सिंह, प्रो. वीना सिंह डॉ. गरिमा सिंह, डॉ. शशि बाला, मधूलिका पांडेय, सत्यनारायण सिंह आदि प्रमुख थे।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दीनानाथ सिंह ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन किया और कई सारगर्भित बिंदुओं का बोध कराया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि आईयूसीटीई काशी हिंदू विश्वविद्यालय के  निदेशक प्रो. पीएन सिंह ने मैथिली शरण गुप्त की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज "हम कौन थे? क्या हो गए ?और क्या होंगे अभी? इस पर प्रत्येक शिक्षक को विचार करने की आवश्यकता है। झारखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रामकुमार सिंह ने कहा कि शिक्षक सदैव राष्ट्र निर्माण के कार्य में ही लगा रहता है। वह चरित्र से व्यक्तित्व तक का निर्माता है। विद्या भारती के उपाध्यक्ष प्रोफेसर रघुराज सिंह ने गुरुओं की परंपरा का उल्लेख करते हुए सनातन परंपरा को स्थापित करने पर बल दिया। इस अवसर पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की परीक्षा नियंत्रक श्रीमती दीप्ति मिश्रा ने अपने संबोधन में शिक्षकों को प्रकाश स्तंभ बताया।
कार्यक्रम के मध्य में प्रो० शीला मिश्रा द्वारा विरचित "मानस प्रसंग और समानांतर लोकगीत परंपरा" नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। सभा को प्रोफेसर राघवेंद्र पांडेय, लहजू प्रसाद कुशवाहा, प्रो. वंदना पांडेय इत्यादि के द्वारा भी संबोधित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश सिंह दीक्षित एवं धन्यवाद ज्ञापन अमिताभ मिश्र द्वारा किया गया।  कार्यक्रम में प्रो नलिनी श्याम कामिल, प्रो आनंद शंकर चौधरी  डॉ. राम जी पाठक  प्रो. नलिन कुमार मिश्र, प्रो. दया शंकर सिंह यादव, प्रो. सुरेश कुमार पाठक,  प्रो. मनोज कुमार मिश्र प्रो. आशुतोष कुमार सिंह, प्रो. अरुण कुमार राय, संजय पाठक, राजेश सिंह सूर्यवंशी, रजनी राय, डॉ. सुधा जोशी समेत विभिन्न जनपदों के अनेकों महाविद्यालयों के प्राचार्य, पूर्व प्राचार्य और शिक्षकगण उपस्थित रहे।

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