मदद की दरकार

ईलमा अजीम

बारिश थमने के बाद सबसे बड़ी चुनौती है बाढ़ग्रस्त इलाकों से पानी, कीचड़, मलबा और मरे जानवरों का निस्तारण करना। इसके लिए बड़े पंप, जेसीबी, डंपर, ईंधन, सफाई उपकरण व सुरक्षात्मक सामान की तत्काल जरूरत है। 

सरकारी तंत्र के पास इतनी मशीनरी तुरंत उपलब्ध नहीं होती, इसलिए समाज के लोगों को चाहिए कि वे ऐसे उपकरण राज्य सरकार को भेंट करें, ताकि पुनर्वास कार्य तेजी और प्रभावी ढंग से हो सके। राहत कार्यों में बड़ी व्यवस्थाओं के साथ-साथ पीड़ित आम लोगों की व्यक्तिगत जरूरतों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। 



मधुमेह, ब्लडप्रेशर, थायराइड जैसे रोगियों को नियमित दवाएं चाहिए, जो बाढ़ में नष्ट हो चुकी हैं। मानसिक तनाव और सीमित राहत सुविधाओं से अव्यवस्थित लोग बढ़ रहे हैं। ऐसे में दवाइयां, पेयजल, डेटॉल, फिनाइल, क्लोरिन टैबलेट्स, संक्रमण व बुखार की दवाएं, ग्लूकोज, सेलाइन जैसी चीजें तत्काल आवश्यक हैं। पुराने कपड़े या अनाज जैसी चीजें फिलहाल उपयोगी नहीं होंगी। संपन्न लोगों को आगे बढ़कर पुनर्निर्माण में योगदान देना होगा—जैसे दूरदराज के गांवों के लिए सीमेंट, लोहा जैसी निर्माण सामग्री भेजना। करीब ढाई लाख लोग पूरी तरह बेघर हो गए हैं, बाजार-वाहन तबाह हो चुके हैं।

 ऐसे में बीमा दावों का त्वरित और सही निपटारा बड़ी राहत हो सकता है। लेकिन राज्य मशीनरी खुद संभलने में व्यस्त है, इसलिए शिक्षित स्वयंसेवकों की जरूरत है जो नुकसान का सही आकलन कर, बीमा कंपनियों पर भुगतान के लिए दबाव बना सकें और सरकार की योजनाओं का लाभ प्रभावितों तक पहुंचा सकें। बाढ़ के बाद जीवन को फिर से पटरी पर लाने में सबसे बड़ी बाधा होगी, सरकारी राहत पाने की प्रक्रिया, क्योंकि पैसा उन्हीं के खातों में आएगा जिनके पास आधार कार्ड है। जिनका सब कुछ बाढ़ में बह गया, उनके पास पहचान पत्र भी नहीं बचे। ऐसे में राहत की रकम देर से मिलना व्यर्थ होगा।



 इस स्थिति में बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों की जरूरत है, जो दूर शहरों में बैठकर प्रभावितों के आधार जैसे दस्तावेज़ ऑनलाइन निकालकर उन तक पहुंचा सकें, ताकि समय पर उन्हें मदद मिल सके। ऐसे संकट के समय में एक सच्चा नागरिक वही है, जो अपने संकटग्रस्त देशवासियों के साथ खड़ा होता है।

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