राजीव त्यागी
आस्था को समर्पित इस देश में, विशेषकर सावन के पावन महीने में, हाल ही में लगातार जो दुर्घटनाएं हुईं, उनमें कई लोगों ने अपनी जान गंवाई और अनेक गंभीर रूप से घायल हुए। जब इन घटनाओं के कारणों की पड़ताल की जाती है, तो या तो बेबुनियाद अफवाहें सामने आती हैं, या फिर प्रशासनिक लापरवाही उजागर होती है। कभी-कभी श्रद्धालुओं की जल्दबाज़ी और पहले दर्शन की होड़ में की गई धक्का-मुक्की भी भगदड़ का कारण बन जाती है। ऐसी भगदड़ों में लोगों के कष्टों का कोई अंत नहीं होता- जानें जाती हैं, लोग घायल होते हैं, परिवार उजड़ते हैं।
बीते 27 जुलाई को उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित मंसा देवी मंदिर में मची भगदड़ में कुछ श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि 36 श्रद्धालु घायल हो गए। बताया गया कि सीढ़ियां चढ़ते समय एक खंभे से जुड़े शॉर्ट सर्किट की अफवाह फैली, जिससे लोग घबरा गए और हड़बड़ी में पीछे हटने लगे। ये घटनाएं यहीं खत्म नहीं होतीं। गत 28 जुलाई को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी स्थित अवसानेश्वर मंदिर में भी भगदड़ की एक और दुखद घटना घटी।
जलाभिषेक के दौरान करंट फैलने से दो लोगों की मौत हो गई और 29 श्रद्धालु घायल हो गए। घटना के तुरंत बाद मंदिर की बिजली काटनी पड़ी, जिससे गर्भगृह में अंधेरा छा गया। इसके बावजूद श्रद्धालु अंधेरे में ही दर्शन और जलाभिषेक करते रहे। इसी दौरान, एक मंत्री के मंदिर में पुष्पवर्षा करने की खबर फैल गई, और देखते ही देखते वहां तीन लाख से अधिक लोग जुट गए। अत्यधिक भीड़ के कारण भगदड़ मच गई, और एक बार फिर हादसा सामने आया। इस तरह की घटनाओं का एक सिलसिला बनता जा रहा है।
भारी भीड़ में आगे बढ़ने की होड़ के बीच जब कोई अफवाह फैला दी जाती है तो लोग घबरा जाते हैं और इधर-उधर भागने लगते हैं। यह कहना भी गलत होगा कि भगदड़ केवल अफवाहों के कारण होती है। प्रशासन की लापरवाही भी इन घटनाओं का एक प्रमुख कारण है। जब किसी मेले या धार्मिक आयोजन में भारी भीड़ जुटनी तय हो, तो प्रशासन को पहले से इसका उचित अनुमान होना चाहिए। श्रद्धालुओं के प्रवेश और निकास के लिए अलग-अलग मार्ग निर्धारित किए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त, मंदिर परिसरों में ऐसे सतर्क सुरक्षाकर्मी या स्वयंसेवक नियुक्त किए जाने चाहिए जो भीड़ को व्यवस्थित रूप से नियंत्रित कर सकें और श्रद्धालुओं को चरणबद्ध तरीके से दर्शन के लिए आगे बढ़ने दें।
ऐसा प्रतीत होता है कि भीड़ की प्रकृति और व्यवहार का समुचित मूल्यांकन न होने के कारण, या प्रशासन की लचर निगरानी से ये घटनाएं बार-बार घटती हैं। आने वाले समय में आस्था-पर्यटन के लिए भीड़ और भी बढ़ेगी। ऐसे में, इन तीर्थस्थलों और मेलों का प्रबंधन करने वाले अधिकारियों की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है। उन्हें न केवल संभावित भीड़ का सही आंकलन करना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे किस प्रकार नियंत्रित किया जाए।
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