सटीक हो आपदा प्रबंधन
इलमा अज़ीम
वर्षाकाल में भीषण प्राकृतिक वर्षा के फलस्वरुप बाढ़ भूस्खलन और नदियों में उफान आने से उत्तरांचल, उत्तराखंड, असम, मेघालय, दिल्ली और पंजाब भीषण त्रासदी झेल रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु भी हो गई है। देश में अतिवृष्टि से बाढ़ का प्रकोप होता है लैंडस्लाइडिंग भी होती है। कई बार भूकंप भी आता है और जान माल की हानि होती है।
यह ऐसा तो है नहीं कि अति वर्षा कई सालों में एक बार होती हो, वर्षा, बाढ़ तथा लैंडस्लाइडिंग का प्रकोप हर वर्ष हम पढ़ते हैं और लोगों की मृत्यु होती है तो ऐसे में केंद्र तथा राज्य सरकारों को आपस में तालमेल बैठाकर कर इस त्रासदी तथा विपदा का पहले से प्रबंध करना चाहिए। ताकि जान माल का कम से कम नुकसान हो सके। आपदा सदैव अनपेक्षित घटना होती है। जो मानवीय नियंत्रण से बाहर तथा प्राकृतिक व मानवीय कारकों द्वारा मूर्त रूप दी जाती है। इन प्राकृतिक आपदाओं से देश की प्रगति पर चोट पहुंचती है। तथा राष्ट्र को आर्थिक रूप से बहुत पीछे खींच कर ले जाती है। आपदा प्रबंधन में जापान से सीख ली जा सकती है।
क्योंकि जापान आपदा प्रबंधन में विश्व में अग्रणी देश माना जाता है। जापान पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र में अवस्थित है, जहां भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाएं सदैव आती रहती हैं। जापान में आपदा प्रबंधन की अत्याधुनिक तकनीक को याकोहामा रणनीति कहा जाता है। आपदा के समय सबसे ज्यादा निम्न आय वर्ग का व्यक्ति तथा मजदूर तबके का व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावित होकर उसकी दिनचर्या समूह रूप से छिन्न-भिन्न हो जाती है, एवं आर्थिक साधन भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे उसे आजीविका का एक बड़ा भय सताने लगता है।
हिमालय क्षेत्र देश के पर्वतीय क्षेत्र मैं भूस्खलन की गंभीर समस्या की संभावना सदैव बनी रहती है। भारत में आपदा प्रबंधन के लिए 1990 में कृषि मंत्रालय के अंतर्गत डिजास्टर मैनेजमेंट सेल स्थापित किया गया था। लेकिन 1993 में लातूर के भूकंप तथा 1998 में मालपा के भूस्खलन तथा 1999 में ओडिशा में सुपर साइक्लोन तथा 2001 में भुज के भूकंप के बाद देश में एक मजबूत आपदा प्रबंधन की व्यवस्था की जरूरत को महसूस करते हुए जेसी पंत की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट में एक सुव्यवस्थित तथा व्यापक सिस्टम तथा विभाग की स्थापना की आवश्यकता प्रतिवेदित की गई थी।
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