शिक्षा में बदलाव
राजीव त्यागी
नई शिक्षा नीति में योग्यात्मक मूल्यांकन की जगह नियमित और रचनात्मक मूल्यांकन का प्रस्ताव है। नई मूल्यांकन प्रणाली अधिक योग्यता पर आधारित है। इससे छात्रों के विकास और सीखने के कौशल में वृद्धि होगी। शिक्षा जब तक संतुलित व व्यावहारिक न हो, तब तक उस शिक्षा का कोई औचित्य नहीं है। कहीं न कहीं भारतीय शिक्षा पद्धति में अव्यावहारिक शिक्षा व असंतुलित शिक्षा का बोध होता है, जिसका संतुलन बिठाने के लिए सरकार ने नई शिक्षा नीति को लाया है।
यह बात स्पष्ट है कि शिक्षा का मनुष्य के लिए बहुत ही महत्व है। इसकी महता को इस कथन से अधिक समझा जा सकता है- ‘विद्याहीन मनुष्य बिना पूंछ व सींग के पशु समान है।’ वर्तमान युग आधुनिकता का युग है, जिसमें सभी चीजों का ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षा ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे व्यक्ति अपना संपूर्ण विकास करता है तथा आगामी जीवन के लिए शिक्षण प्राप्त करता है। साथ में किसी भी देश की तकदीर बदलने व वहां के विकास और उत्थान में भी उस देश की शिक्षा नीति का बहुत बड़ा योगदान होता है। कोई भी राष्ट्र अपने सर्वोत्तम विकास के लिए अपनी शिक्षा नीति पर निर्भर रहता है, क्योंकि जैसी शिक्षा नीति होगी, उसके अनुरूप ही वहां की शिक्षा व्यवस्था होती है तथा शिक्षा भी उसी प्रकार की दी जाती है। यानी शिक्षा नीति को सुदृढ़ व सशक्त रूप देना उस देश के विकास मार्ग की गाथा लिखता है। भारत प्राचीन समय से ही शिक्षा व ज्ञान का केन्द्र रहा है, जहां पूरे विश्व से शिक्षा ग्रहण करने लोग आते थे। भारत की शिक्षा पूरे विश्व में प्रचलित थी। भारत को ज्ञान की भूमि कहा जाता था, लेकिन बीच के कुछ वर्षों में भारतीय शिक्षा पद्धति उस प्राचीन शिक्षा पद्धति के अनुरूप आगे नहीं बढ़ पाई। अंग्रेजों ने जबरन अपनी अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों पर थोपनी चाही।
परिणामस्वरूप लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति 10 जमा 2 जमा 3 को अपनाया गया जिसमें अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया गया लेकिन बुनियादी शिक्षा को दरकिनार किया गया। फलस्वरूप बच्चों में मौलिक शिक्षा का अभाव था, जिसको देखते हुए बहुत पहले से देश की शिक्षा नीति में बदलाव और नई शिक्षा नीति को लागू करने की आवाजें बुलंद की जा रही थीं। इसे देखते हुए देश में 35 साल बाद नई शिक्षा नीति को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दे दी गई, जिसके बाद भारत में आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था में कई बड़े बदलाव देखने को मिलना तय है। सबसे पहले तो इस नई शिक्षा नीति-2020 को समझना आवश्यक हो जाता है कि किस प्रकार की यह नई शिक्षा नीति लागू की गई है जिससे देश में एक सकारात्मक बदलाव आएगा। नई शिक्षा नीति में सबसे पहले तो मैकाले की शिक्षा नीति 10 जमा 2 की जगह अब 5 जमा 3 जमा 3 जमा 4 शिक्षा पद्धति को अपनाया जाएगा जिसके अंतर्गत सबसे पहले बच्चों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की जाएगी तथा नई शिक्षा नीति के अनुसार प्राथमिक शिक्षा अब स्थानीय क्षेत्रीय भाषा में करवाना अनिवार्य होगा तथा जिस प्रकार पहले अंग्रेजी को थोपा जाता था, अब वैसा नहीं होगा, बल्कि अंग्रेजी को भी अन्य विषयों की तरह एक विषय के रूप में ही पढ़ाया जाएगा।
ऐसी व्यवस्था होने से कहीं न कहीं विद्यार्थियों से कुछ बोझ कम होगा तथा बच्चे एक संतुलित शिक्षा हासिल कर पाएंगे। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत अब केवल बारहवीं कक्षा में ही बोर्ड की परीक्षाएं होंगी, जबकि दसवीं के बोर्ड को हटा दिया जाएगा तथा नौवीं से बारहवीं तक अब सैमेस्टर सिस्टम के तहत पढ़ाई करवाई जाएगी।
यह बात तो हुई स्कूली स्तर में नई शिक्षा नीति के बदलाव की, लेकिन साथ में ही उच्च शिक्षा में भी नई शिक्षा नीति के आने से उच्च शिक्षा का रंग-रूप पूर्ण रूप से बदल जाएगा। नई शिक्षा नीति में वोकेशनल शिक्षा को भी बढ़ावा देने की बात की गई है, लेकिन बात करने से ही व्यवस्था में व्यावहारिक अध्ययन शामिल नहीं हो सकता। देश के युवाओं को व्यावहारिक शिक्षा देने की बहुत आवश्यकता है।
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