मुखाग्नि


गोपाल की अर्थी उठने ही वाली थी। बाहर गये बेटे पंकज का सब इंतजार कर रहे थे। एक ने कहा- 'चंद्रपुर यहाँ से बहुत दूर है भाई। फिलहाल उसका पहुँच पाना सम्भव नहीं है।'
'पर उसके बगैर अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता।' दूसरे ने कहा।
'हाँ, उसे ही तो मुखाग्नि देनी है।' तीसरे ने कहा।
'सही बात है। यह उसका अंतिम बार मुखाग्नि देना होगा। जीते-जी गोपाल काका को पंकज ने कई बार मुखाग्नि दे डाली है।' इस चौथे व्यक्ति की बातें सुन कोई कुछ नहीं बोल पाया।
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- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

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