स्वैच्छिक रक्तदान की संस्कृति को बढ़ायें

- रामाश्रय यादव
जीवन और मौत के बीच जूझ रहे लोगों को जीवन देने का और अधिक स्वास्थ्य संकट से घिरे व्यक्ति के जीवन की आशा की किरण बनने का सशक्त माध्यम है रक्त दान। दुनिया भर में अनगिनत लोगों को रक्त की अपेक्षा रहती है, इसलिए रक्त दान महा दान है। इंसान की सम्पति का कोई मतलब नहीं अगर उसे बांटा या उपयोग में न लाया जाए, चाहे उसके शरीर का रक्त ही क्यों न हो। किसी व्यक्ति की रक्त अल्पता के कारण मृत्यु न हो,इस दृष्टि से रक्त दान एक महादान है,जो किसी को जीवन-दान देने के साथ हमें संतोष पथ की ओर अग्रसर करता है ऐसा दान दाता समाज, सृष्टि एवं प्रकृति के प्रति अपना कर्तव्य पालन करता है। किसी के द्वारा दिए गये रक्त से किसी को नया जीवन मिल सकता है उसकी जिन्दगी में बहार आ सकती है, और रक्त दाता किसके जीवन का रक्षक बनता है उसे भी नहीं मालूम होता है।
रक्तदान का महत्व न केवल उन हजारों लोगों के जीवन को बचाना है जो रक्त की कमी या अभाव के कारण जीवन एवं मृत्यु के बीच संघर्षरत हैं, बल्कि विभिन्न बीमारियों से प्रभावित कई अन्य लोगों के जीवन को बचाना और उन्हें अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करना भी है कल्पना कीजिए कि यह जानकर कैसा महसूस होगा कि आपने किसी की जान बचाई है। आपकी वजह से, कोई व्यक्ति अब अपने परिवार के साथ रह रहा है। यह भी देखा गया कि जब लोगों ने अपना रक्त दान किया हे तो उन्हें कई स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हुए हैं। रक्तदान करने वाले लोग-बाग ज्यादातर अपनी बीमारियों से जल्दी ठीक हो जाते हैं। लम्बी उम्र जीते हैं, वजन घटाने, स्वस्थ यकृत और रक्त में आयरन के स्तर को बनाये रखने,दिल के दौरे और कैंसर के खतरे को कम करने में भी मददगार होता है।


भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के बावजूद रक्तदान में काफी पीछे है। रक्त की कमी को खत्म करने के लिए विश्व भर में रक्तदान दिवस मनया जा रहा है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानि करीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल हजारों मरीज दम तोड़ देते हैं।यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही डेढ़ अरब पहंच गयी हो, रक्तदताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिश्त भी नहीं पहुंच पाया है।वहीं दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफी पीछे छोड़ देते हैं।
मालूम हो कि नेपाल में कुल रक्त की जरूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलैण्ड 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 प्रतिशत और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित बर्मा में 60 प्रतिशत हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है। रक्तदान को लेकर विभिन्न भ्रांतियां समाज में व्याप्त है। रक्त की महिमा सभी जानते हैं। रक्त से आपकी जिंदगी तो चलती ही है साथ ही कितने अन्य के जीवन को भी बचाया जा सकता है। भारत में अभी भी बहुत से लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाईं होने में महीनों लग जाते हैं। इतना ही नहीं यह गलतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित रक्त देने से लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और उसे बीमारियां जकड़ लेती है।यहीं भ्रम इस कदर फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं।


भारतीय रेडक्रास के अनुसार देश में रक्तदान को लेकर भ्रांतियां कम हुई हैं पर अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। किसी व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता क्यों होती है इसके विभिन्न कारण हैं।एक बीमारी है, दुर्घटना असाध्य ओपरेशन कुछ भी हो सकती है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है। रक्तदान करते हुर रक्तदाता के शरीर से केवल एक यूनिट रक्त ही लिया जाता है। एक बार रक्तदान से आप 3 लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं। ब्लड डोनेशन की प्रक्रिया काफी सरल होती है और रक्त दाता को आमतौर पर इसमें कोई तकलीफ नहीं होती है। रक्दाता का वजन, पल्स रेट, ब्लड प्रेतर, बॉडी टेम्परेचर आदि चीजों के सामान्य पाए जाने पर ही डॉक्टर्स या ब्लड डोनेशन टीम कें सदस्य आपका ब्लड लेते हैं। पुरुष 3 महीने और महिलाएं 4 महीने के अंतराल में नियमित रक्तदान कर सकती हैं।यदि आप स्वस्थ हैं, आपको किसी प्रकार का बुखर या बीमारी नहीं है, तो ही आप रक्तदान कर सकते हैं। रक्तदान खुशी देने एवं खुशी बटोरने का एक जरिया है। एक चीनी कहावत है पुष्प इकट्ठा करने
वाले हाथ में कुछ सुगंध हमेशा रह जाती है, आईये हाथ बढायें, रक्त दीजिए, प्लाज्मा दीजिए, जीवन बांटिए, बार-बार बांटिए, जान बचायें।
(लेखक राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद जनपद मऊ के जिलाध्यक्ष व सामाजिक चिंतक हैं)

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